आज हिंदी सिनेमा में अपनी छाप छोड़ने वाले दिग्गज कलाकार फारुख शेख की 70वीं सालगिरह है। उनका जन्म 25 मार्च, सन् 1948 को बड़ौदा (गुजरात) के नजदीक एक गांव में जमींदार घराने में हुआ था। पिता मुस्तफा शेख मुंबई के एक प्रतिष्ठित वकील थे और मां फरीदा शेख गृहिणी। फारुख ने अपनी पढ़ाई मुंबई के सेंट मैरी स्कूल में की। जहां वे पढ़ाई के साथ नाटकों और खेल-कूद की गतिविधियों में हिस्सा लेते थे। फारुख ने हमेशा कहा कि उनके भीतर जो संस्कार और सादगी आई, वह उनके पिता के व्यक्तित्व की देन थे। फारुख शेख एक ऐसे अभिनेता रहे, जो पर्दे पर अभिनय नहीं करते थे, बल्कि उसे जीते थे। चाहे वो ‘चश्मे बद्दूर’ के सिद्धार्थ पराशर का किरदार हो, ‘उमराव जान’ के नवाब का किरदार या फिर कभी फिल्म ‘साथ-साथ’ का बेबस बेरोजगार युवक और ऐसे तमाम किरदार हैं, जो आज भी उनके होने का अहसास करा देते हैं। फारुख शेख असल जिंदगी में भी अक्सर अपने आस-पास मौजूद लोगों की मदद भी करते थे। चलिए, आज हम आपको फारुख शेख से जुड़ा एक रोचक किस्सा बताते हैं, जब एक लाइटमैन के लिए वह रोजाना अस्पताल के चक्कर लगाया करते थे।
दरअसल, यह वाकया साल 1981 में रिलीज हुई फिल्म ‘चश्मे बद्दूर’ का है। जब भी फारुख शेख की चर्चा होती है, इस फिल्म का जिक्र भी किया जाता है। यह उनकी बेहतरीन फिल्मों में से एक है। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान लोगों ने फारुख शेख की कलाकारी के साथ-साथ उनकी दरियादिली भी देखी थी। दरअसल, हुआ कुछ यूं था कि एक दिन एक लाइटमैन छत पर लाइट लगाते हुए नीचे गिर गया।
लाइटमैन को काफी गंभीर चोटें आईं, उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। लाइटमैन को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद सभी फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हो गए। कई दिन बीत जाने के बाद फिल्म के डायरेक्टर सई परांजपे को पता चला कि फारुख शेख रोजाना अस्पताल में भर्ती लाइटमैन से मिलने जाते हैं, जिसके बारे में उन्होंने किसी से जिक्र तक भी नहीं किया था। उन्होंने शूटिंग के बाद जब भी समय मिलता था, वह लाइटमैन को देखने अस्पताल पहुंच जाते थे। यही नहीं, फारुख शेख ने उसके इलाज का पूरा खर्च भी उठाया था।

