पंजाब का मुसलिम बहुल जिला मलेरकोटला दो विधानसभा हलकों में बंटा है। मलेरकोटला और अमरगढ़। यह जिला सूबे का 23वां घोषित जिला है। इसकी घोषणा पूर्व मुख्मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पिछले साल ईद पर की थी जबकि पहले यह जिला संगरूर का हिस्सा था। फिलहाल यह कहना मुश्किल है कि इस घोषणा का फायदा उन्हें इस विस चुनाव में होगा या उनकी पूर्व पार्टी को।

जिले की खासियत यह है कि यहां लोग सर्वधर्म समभाव से रहते आए हैं। इतिहास में दर्ज है कि सन् 1947 में देश के बंटवारे के दौरान भी यहां हिंसा की एक अदद घटना तक नहीं हुई। वैसे भी यहां लड़ाई-झगड़े की छिटपुट वाकयों को छोड़कर सांप्रदायिक हिंसा की कोई बड़ी वारदात आज तक नहीं हुई है। आलम यह है कि यहां के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर में मंगलवार को प्रसाद बनाने की दुकान का मालिक भी एक मुसलिम है और इस दिन यहां दिखाई देने वाली धर्मनिरपेक्षता का हर चुनाव में डंका बजता है।

मलेरकोटला में कुल 1,59,095 मतदाता हैं जिनमें 84,383 पुरुष और 74,706 महिला हैं। यह हलका 54 गांवों में फैला है और इसलिए इसे ग्रामीण और शहरी तबके का मिला-जुला हलका कह सकते हैं। वैसे यह मुसलिम बहुल हलका है जहां 60 फीसद से भी अधिक वोटर मुसलमान हैं। यही वजह है कि हर बार राजनीतिक दल यहां से किसी मुसलिम उम्मीदवार को ही चुनाव मैदान में उतारती आर्इं हैं। केवल सन 1957 में एक बार कांग्रेस के चंदा सिंह ही मलेरकोटला से विजयी हुए थे। यहां हलके में ‘ईदगाह’ और ‘हा दा नारा साहिब गुरुद्वारा’ कुछ अहम स्थल हैं, जबकि यहां सरहिंदी गेट पर मलेरकोटला के आखिरी नवाब इफ्तखार अली खान का प्राचीन मकबरा भी एक प्रसिद्ध इमारत है।

यहां से कांग्रेस की रजिया सुलताना मौजूदा विधायक हैं जो इससे पहले 2002 और 2007 भी विधायक रहीं। वर्ष 2012 के विस चुनाव में यहां से शिअद- बादल की फरजाना आलम विजयी हुर्इं थीं। रजिया सुलताना पूर्ववर्ती कैप्टन सरकार में 2017 से कबीना मंत्री भी रहीं। वे उनकी ही पहली सरकार में भी लोनिवि मंत्री बनीं थीं। वे पंजाब के पूर्व डीजीपी मोहम्मद मुस्तफा की बीवी हैं जो अब पीपीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के मीडिया सलाहकार भी हैं।

पंजाब में चन्नी सरकार के शपथ लेते ही रजिया ने तक सिद्धू के समर्थन में मंत्रीपद छोड़ दिया था जब उन्होंने पीपीसीसी अध्यक्ष पद छोड़ने की पेशकश की थी, हालांकि, बाद में वे मंत्रिमंडल में लौट आर्इं। ‘आप’ ने यहां से जमील-उर्र-रहमान को प्रत्याशी बनाया है जो डाक्ट्रेट डिग्रीधारक हैं और कई साल से राजनीति में हैं। जानकारी के मुताबिक, वर्ष 2017 में आप की झाड़ू थामने से पूर्व वे बसपा, कांग्रेस और यहां तक कि शिअद में भी रहे जब अंतत: उन्हें बसपा ने संगरूर से टिकट दिया था लेकिन वे हार गए थे। शिअद के नुसरत एकराम खान बग्गा प्रत्याशी हैं और 64 वर्षीय बग्गा अकाली समर्थक नेता हैं। वे 1997 की बादल सरकार में खेल मंत्री भी रहे।

मलेरकोटला के चुनावी मुद्दों में स्थानीय जड़ग चौक पर 29.57 करोड़ रुपए की लागत से बना पुल फिलहाल बड़ा मसला बना हुआ है। स्थानीय वासी वसीम शेख का कहना है कि यह पुल दरअसल, रजिया सुलताना की ही परियोजना है जिसका लोकार्पण भी बीते साल हुआ था लेकिन जनवरी में इसमें कुछ दिक्कत आ गई जिसकी मरम्मत का काम अब वहां चल रहा है लेकिन वोटर यकीनन मौजूदा विधायक से इस बाबत सवाल पूछेगा।

दूसरे हलका अमरगढ़ में कुल 1,65,060 लाख वोटर हैं जिनमें से 87,262 पुरुष तो 77,799 महिला हैं। इस हलके में भी दो कस्बे आते हैं- अमरगढ़ और अहमदगढ़ और इसमें 125 गांव बसे हैं यानी यह कुल मिलाकर एक ग्रामीण बहुल हलका है। यहां से कांग्रेस के सुरजीत सिंह धीमान मौजूदा विधायक हैं, जबकि वर्ष 2012 में शिअद के इकबाल सिंह झुंडा विधायक निर्वाचित हुए थे।

अब जसवंत सिंह गज्जनमाजरा को आप ने प्रत्याशी बनाया है। वर्ष 2017 में वह लोइंपा-आप गठबंधन की टिकट पर चुनाव लड़े थे लेकिन 36,000 वोटों के साथ वे तीसरे स्थान पर रहे। चुनाव नतीजों के बाद वे आप में चले गए। उनका संगरूर में एक कालेज और तीन स्कूल चल रहे हैं। शिअद ने यहां से इकबाल सिंह झुंडा को प्रत्याशी बनाया है जो वर्ष 2012 में अमरगढ़ से विधायक चुने गए थे। वे पेशे से वकील हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने अपने विधायक काल के दौरान यहां एक दाना मंडी और एक उपमंडल कार्यालय स्वीकृत कराया था।यहां के चुनावी मुद्दों में मतदाता का कहना है कि सरकारी अस्पताल में समुचित स्टाफ नहीं है जिसके कारण किफायती उपचार सुविधाओं का यहा ं बड़ा टोटा है।