यूजीसी ने यूनिवर्सिटीज को साफ कर दिया है कि बिना एग्जाम फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को डिग्री नहीं दी जाएगी। हालांकि यूजीसी ने छूट दी है कि वह एग्जाम ऑनलाइन या ऑफलाइन कैसे भी करा सकते हैं। अगर कोई स्टूडेंट अभी एग्जाम नहीं दे पा रहा है तो उसके एग्जाम बाद में भी कराए जा सकते हैं, लेकिन एग्जाम कराने जरूरी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी एग्जाम को जरूरी माना था और यूजीसी के पक्ष में फैसला सुनाया था। आयोग ने कहा था कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा, जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी। हालांकि, छात्रों ने आयोग के इस फैसले पर भी असहमति जताई थी।
UGC Exam Guidelines 2020 Live Updates: Check Your Exam Date
UGC ने 2020-21 शैक्षणिक सत्र के पहले साल के बैच के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं। जिसमें कहा गया है कि यूजी व पीजी कोर्स के प्रथम साल के बैच के लिए नया शैक्षणिक सत्र नवंबर के पहले सप्ताह से शुरू होगा। जबकि, यूजीसी के ही पहले शेड्यूल के हिसाब से कई कॉलेज पहले साल के बैच ऑनलाइन शुरू कर चुके हैं। इससे पहले के यूजीसी दिशा-निर्देशों में कहा गया था कि सितंबर 2020 से नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत होगी।
Sarkari Naukri Job Notification 2020 LIVE Updates: Check Here


दिल्ली, पश्चिम बंगाल, पंजाब और तमिलनाडु के सम्मानित मुख्यमंत्रियों ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर UGC के दिशानिर्देशों को लागू न करने की मांग की थी। ये वह राज्य हैं जहां कोरोना संक्रमण की हालत बेहद खराब है। अब कोर्ट के फैसले के बाद सभी राज्यों में परीक्षाएं अनिवार्य हो गई हैं।
बैंगलोर विश्वविद्यालय ने अंतिम वर्ष की स्नातक/ स्नातकोत्तर परीक्षाओं को स्थगित कर दिया है। परीक्षाएं जो 25 सितंबर से आयोजित होने वाली थी मगर अब 05 अक्टूबर से आयोजित की जाएगी।
कोई भी छात्र, जो अंतिम सेमेस्टर के लिए परीक्षा शुल्क और फॉर्म जमा कर चुका है, लेकिन किसी भी तरह से परीक्षा क्षेत्र में रहने के कारण परीक्षा में उपस्थित नहीं हो पा रहे हैं या कोरोना पॉजिटिव हैं, वे अपने कॉलेज या यूनिवर्सिटी को पहले इस बारे में सूचित कर दें।
UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे सही ठहराते हुए आयोग के पक्ष में अपना फैसला सुनाया।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। परीक्षाएं 10 सितंबर से होनी थीं मगर यूनिवर्सिटी ने पहले ही एग्जाम स्थगित कर दिए। अब जल्द ही नई डेट्स जारी की जाएंगी।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा था कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया था कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा था कि छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है। राज्य सरकार ने अभी तक परीक्षा की तिथि के संबंध में कोई जानकारी जारी नहीं की है।
महाराष्ट्र, दिल्ली, पश्चिम बंगाल और ओडिशा ने उच्चतम न्यायालय से अनुरोध किया था कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को निर्देश दिया जाए कि वह चल रहे महामारी के दौरान लाखों विश्वविद्यालय के छात्रों पर अंतिम वर्ष की परीक्षा का दबाव न बनाए। अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए राज्यों को परीक्षा रद्द करने की अनुमति तो दी है मगर कहा है कि बगैर परीक्षा के डिग्री नहीं दी जा सकती।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एडप्पादी के पलानीस्वामी (Edappadi K Palaniswami) ने एक बयान में कहा, इन छात्रों यूजीसी और एआईसीटीई (UGC and AICTE) के दिशानिर्देशों के मुताबिक, मार्क्स दिए गए हैं।
अदालत द्वारा जारी फैसले के अनुसार, कॉलेज/यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर के एग्जाम स्थगित तो किए जा सकते हैं मगर परीक्षाएं रद्द नहीं की जा सकती और न ही छात्रों को इंटर्नल मार्क्स के आधार पर पास किया जा सकता है।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के तर्क को सही ठहराया है।
ओडिशा सरकार ने COVID के बढ़ते मामलों के चलते यह कहा था कि छात्रों के स्वास्थ्य के मद्देनज़र, परीक्षाएं आयोजित करा पाना संभव नहीं है। राज्य सरकार ने अभी तक परीक्षा की तिथि के संबंध में कोई जानकारी जारी नहीं की है।
कई कॉलेजों के प्रिंसिपल्स ने महसूस किया कि कई परेशानियों के होने के कारण ग्रेस मार्क्स देना आवश्यक है क्योंकि छात्र पहली बार एक नए प्रारूप में परीक्षा के लिए उपस्थित हो रहे हैं। जबकि कुछ प्रिंसिपल ने महसूस किया कि विश्वविद्यालय परीक्षाओं के संचालन के लिए व्यापक समान दिशा-निर्देश जारी कर सकता है।
मुंबई विश्वविद्यालय ने सभी मान्यता प्राप्त कॉलेजों को निर्देश दिया है कि वे उन छात्रों को ग्रेस मार्क्स दें जो मुंबई विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष परीक्षा 2020 के लिए उपस्थित होने वाले हैं।
परीक्षा के दिन, क्वेश्चन पेपर ईमेल के माध्यम से या व्हाट्सएप के माध्यम से या विभाग या कॉलेज की वेबसाइट पर छात्रों को उपलब्ध कराया जाएगा। इसलिए, छात्रों को निर्देश दिया जाता है कि वे अपने विभागों /कॉलेजों के साथ निरंतर संपर्क में रहें ताकि निर्देशों का ठीक से पालन किया जा सके।
अदालत द्वारा जारी फैसले के अनुसार, कॉलेज/यूनिवर्सिटी के फाइनल ईयर के एग्जाम स्थगित तो किए जा सकते हैं मगर परीक्षाएं रद्द नहीं की जा सकती और न ही छात्रों को इंटर्नल मार्क्स के आधार पर पास किया जा सकता है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा था कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया था कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आरटीएमएनयू के निदेशक मंडल परीक्षा (BoE) प्रफुल्ल साबले ने कहा, परीक्षाएं 1 अक्टूबर को शुरू होनी थीं, 78,000 छात्रों को इसमें बैठने के लिए होने के लिए निर्धारित किया गया था।
राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय की अंतिम वर्ष की ऑनलाइन परीक्षा 13 में गैर-शिक्षण कर्मचारियों की हड़ताल के कारण मंगलवार को स्थगित कर दी गई।
अदालत ने यह माना कि राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी। आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।
परीक्षा ऑनलाइन देने वाले छात्रों को एग्जाम पेपर डाउनलोड करने और अपलोड करने के लिए अतिरिक्त समय दिया जाएगा। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन की व्यवस्था भी की गई है ताकि रिजल्ट बिना देरी के घोषित किए जा सकें। यह भी तय किया गया था कि वैध कारणों से परीक्षा देने में असमर्थ छात्रों को एक और मौका दिया जाएगा।
आयोग ने कहा है कि जो छात्र परीक्षा में भाग लेने में सक्षम नहीं होंगे, उन्हें परीक्षा के लिए एक और मौका दिया जाएगा जब महामारी की स्थिति नियंत्रण में होगी। हालांकि, छात्रों ने आयोग के इस फैसले पर भी असहमति जताई है।
अदालत ने माना कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को UGC के दिशानिर्देशों के विपरीत जाकर परीक्षा न कराने के आदेश देने का अधिकार है, इसलिए अदालत राज्यों को यह अनुमति देती है कि वे UGC से एग्जाम कराने की डेडलाइन में छूट मांग सकते हैं।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
अभिषेक मनु सिंघवी ने SC को सुनवाई के दौरान बताया था कि यह जीवन और स्वास्थ्य का मामला है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, पंजाब, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और ओडिशा जैसे राज्यों ने परीक्षा आयोजित नहीं करने का फैसला किया है।
अदालत में UGC ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि देशभर के विश्वविद्यालयों को आयोग द्वारा जारी निर्देशों का पालन करना अनिवार्य है। इसलिए कोई भी राज्य सरकार आयोग के निर्देशों के खिलाफ परीक्षा रद्द करने का फैसला नहीं ले सकती। सुप्रीम कोर्ट ने आयोग के तर्क को सही ठहराया है।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। परीक्षाएं 10 सितंबर से होनी थीं मगर यूनिवर्सिटी ने पहले ही एग्जाम स्थगित कर दिए। अब जल्द ही नई डेट्स जारी की जाएंगी।
UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे।
UGC के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट कर डिग्री नहीं दे सकती इसलिए UGC की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
अदालत ने कहा कि राज्य परीक्षाएं कराने के लिए UGC से और समय मांग सकते हैं मगर बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट नहीं कर सकते क्योंकि यूनिवर्सिटी को UGC के ऊपर अधिकार नहीं हैं।
अदालत ने माना कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को UGC के दिशानिर्देशों के विपरीत जाकर परीक्षा न कराने के आदेश देने का अधिकार है, इसलिए अदालत राज्यों को यह अनुमति देती है कि वे UGC से एग्जाम कराने की डेडलाइन में छूट मांग सकते हैं।
UGC ने कहा है कि जारी की गई गाइडलाइंस के जरिए 'देश भर के छात्रों के शैक्षणिक भविष्य की रक्षा करना है जो कि उनके अंतिम वर्ष / टर्मिनल सेमेस्टर की परीक्षा नहीं होने पर होगी, जबकि उनके स्वास्थ्य और सुरक्षा को ध्यान भी ध्यान में रखा गया है।'
यूजीसी द्वारा 22 अप्रैल 2020 को और 6 जुलाई 2020 जारी किए गए दिशा-निर्देशों में कोई अंतर नहीं है। UGC ने 22 अप्रैल की गाइडलाइंस में 31 अगस्त तक परीक्षाएं आयोजित करने के निर्देश दिये थे, जबकि 06 जुलाई की गाइडलाइंस में परीक्षाओं को 30 सितंबर तक करा लेने के निर्देश दिये थे।
आयोग का कहना है कि फाइनल ईयर के एग्जाम बेहद महत्वपूर्ण होते हैं। कॉलेज या यूनिवर्सिटी अपनी सुविधा के आधार पर ऑनलाइन या ऑफलाइन किसी भी माध्यम में परीक्षा आयोजित कर सकते हैं।
तमिलनाडु में, टर्मिनल परीक्षा के लिए उपस्थित होने वाले छात्रों को छोड़कर, बीए, बीएससी, एमए, एमएससी, बीई / बीटेक, एमई / एमटेक, एमसीए और डिप्लोमा पाठ्यक्रमों के सभी छात्रों को अगले शैक्षणिक वर्ष में प्रमोट किया गया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा था कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया था कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
अदालत ने यह माना कि राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी। आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।