UGC परीक्षा दिशानिर्देश और अंतिम वर्ष की विश्वविद्यालय परीक्षा 2020 पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला UGC के पक्ष में सुनाया है। कोर्ट ने माना है कि राज्य सरकारें परीक्षा रद्द कर सकती हैं मगर UGC बगैर परीक्षा के छात्रों को प्रोमोट कर डिग्री नहीं दे सकती। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि UGC की गाइडलांइस में कोई बदलाव नहीं होगा तथा अदालत इन्हें सही मानती है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यूजीसी दिशानिर्देश और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि छात्रों को स्नातक करने के लिए अंतिम परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल सरकार दुर्गा पूजा शुरू होने से पहले अक्टूबर में परीक्षा आयोजित करने की कोशिश करेगी। दुर्गा पूजा 22 अक्टूबर को है।
UGC Guidelines for University Final Year Exam 2020 Live: Check SC Verdict here
मामले की सुनवाई 18 अगस्त को समाप्त हुई थी और फैसला 28 अगस्त को सुनाया गया है। अदालत में दलील पेश की गई कि चूंकि डिग्री यूजीसी द्वारा प्रदान की जाती है इसलिए यूजीसी को परीक्षाएं आयोजित कराने का आदेश देने का अधिकार है। आपदा प्रबंधन अधिनियम के अनुसार, केंद्र सरकार इस मामले में राज्य सरकार को निर्देश दे सकती है। अब UGC के निर्देशों के अनुसार परीक्षा से जुड़ी हर ताजा अपडेट के लिए हमारे साथ बने रहें।
UGC Exam Guidelines 2020: Read Here
Highlights
यूजीसी के फैसले को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यदि किसी राज्य को लगता है कि वे उस तारीख तक परीक्षा नहीं दे सकते हैं, तो उन्हें परीक्षा आयोजित करने के लिए नई तारीखों के लिए यूजीसी से संपर्क करना होगा।
आयोग ने शीर्ष अदालत से कहा था कि उसके निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को COVID-19 महामारी के बीच 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह 'डिक्टेट नहीं' है, लेकिन राज्यों को परीक्षा आयोजित किए बिना निर्णय नहीं ले सकता है।
उन्होनें अदालत से कहा, "यूजीसी अधिनियम अनुसूची 7 में सूची 1 के प्रविष्टि 66 के माध्यम से UGC को परीक्षा के विषय में फैसला लेने का अधिकार है। मैं आपका ध्यान धारा 12 पर आकर्षित करना चाहता हूं जो विश्वविद्यालय के अधिकार बताता है। 2003 का विनियमन 6 (1) नियम डिग्री देने के लिए न्यूनतम मानक के बारे में है जिसके अनुसार बगैर परीक्षा के आयोग किसी भी छात्र को डिग्री नहीं दे सकता।"
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि राज्य और विश्वविद्यालय अंतिम वर्ष की परीक्षा दिए बिना छात्रों को प्रमोट नहीं किया जा सकता है। हालांकि यही बात यूजीसी और केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल द्वारा भी लगातार कही जा रही थी।
यूजीसी ने फैसला किया था कि सभी अंतिम वर्ष की परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले आयोजित की जाएंगी। कई राज्यों ने फैसले का विरोध किया और दिल्ली, महाराष्ट्र सहित कई राज्यों ने अंतिम वर्ष की परीक्षाओं को रद्द कर दिया। लेकिन यूजीसी ने कहा कि राज्य अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के आयोजन का निर्णय नहीं ले सकते।
एनडीटीवी न्यूज वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ममता बनर्जी ने कहा, कि 'मैं अदालत को दोष नहीं दूंगी। लेकिन मैं केंद्र सरकार से यूजीसी से पूछना चाहती हूं कि आप छात्रों को क्यों परेशानी में डाल रहे हैं? अमेरिका में, उन्होंने स्कूल खोले, छात्र गए और एक लाख छात्रों को कोरोवायरस संक्रमण हुआ।'
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने यूजीसी दिशानिर्देश और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। उन्होंने शनिवार को कहा कि छात्रों को स्नातक करने के लिए अंतिम परीक्षा आयोजित की जानी चाहिए। पश्चिम बंगाल सरकार दुर्गा पूजा शुरू होने से पहले अक्टूबर में परीक्षा आयोजित करने की कोशिश करेगी। दुर्गा पूजा 22 अक्टूबर को है।
भारत भर के 755 विश्वविद्यालयों में से 366 विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार अगस्त या सितंबर में परीक्षा आयोजित करने के लिए तैयार थे। आयोग का निर्देश है कि परीक्षाएं 30 सितंबर से पहले पूरी हो जानी चाहिए।
याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का पक्ष रख रहे अधिवक्ता सिंघवी ने कहा था कई विश्वविद्यालयों के पास तो परीक्षाओं को ऑनलाइन आयोजित करने के लिए आवश्यक आईटी इंफ्रास्ट्रक्टर ही नहीं है। साथ ही, भौतिक रूप से परीक्षाएं कोविड-19 के कारण आयोजित नहीं की जा सकती हैं।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी हैं। परीक्षाएं 10 सितंबर से होनी थीं मगर परीक्षा रद्द कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मामला अभी लंबित है।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अदालत को यह भी कहा कि राज्य नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के अपने संवैधानिक कर्तव्य से बाध्य है। वकील ने इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाया कि दक्षिण बंगाल के जिले चक्रवात अम्फान से प्रभावित हुए हैं और कोरोना का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। ऐसे में परीक्षा आयोजित करा पाना बेहद मुश्किल काम है।
मामले की आखिरी सुनवाई 18 अगस्त, 2020 को की गई थी लेकिन अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और सभी पक्षों को अपना अंतिम तर्क पेश करने के लिए तीन दिन का समय दिया था। मामले पर फैसला आज दिया जाएगा।
TOI द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
बिहार, महाराष्ट्र और असम जैसे राज्य इस समय बाढ़ से भी जूझ रहे हैं। ऐसे में कईयों को शहर से बाहर पलायन करना पड़ गया है। इन राज्यों में एग्जाम कराना बहुत बड़ी चुनौती होगा। राज्य सरकारें परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं UGC ने परीक्षाओं को अनिवार्य बताया है।
उन्होनें अदालत से कहा, "यूजीसी अधिनियम अनुसूची 7 में सूची 1 के प्रविष्टि 66 के माध्यम से UGC को परीक्षा के विषय में फैसला लेने का अधिकार है। मैं आपका ध्यान धारा 12 पर आकर्षित करना चाहता हूं जो विश्वविद्यालय के अधिकार बताता है। 2003 का विनियमन 6 (1) नियम डिग्री देने के लिए न्यूनतम मानक के बारे में है जिसके अनुसार बगैर परीक्षा के आयोग किसी भी छात्र को डिग्री नहीं दे सकता।"
UGC के पक्ष में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यूनिवर्सिटी बगैर परीक्षा कराए छात्रों को प्रोमोट कर डिग्री नहीं दे सकती इसलिए UGC की गाइडलाइंस में कोई बदलाव नहीं होगा।
अदालत ने माना कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को UGC के दिशानिर्देशों के विपरीत जाकर परीक्षा न कराने के आदेश देने का अधिकार है, इसलिए अदालत राज्यों को यह अनुमति देती है कि वे UGC से एग्जाम कराने की डेडलाइन में छूट मांग सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने आज 28 अगस्त को मामले में फैसला सुनाया है।
मामले में हस्तक्षेप के लिए देश भर के 11 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद, 2 अलग-अलग याचिकाएँ, महाराष्ट्र राज्य की ओर से युवा सेना द्वारा और एक अन्य छात्र द्वारा एक अन्य याचिका भी दायर की गई थी। अदालत में इस मामले की कई सुनवाई हुई। अदालत ने आज 28 अगस्त को मामले में फैसला सुनाया है।
UGC ने दिशानिर्देश जारी किए थे जिसमें कहा गया था कि विश्वविद्यालयों के लिए किसी भी पेन और पेपर, ऑनलाइन, या 30 सितंबर, 2020 तक दोनों के संयोजन का उपयोग करके अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करना अनिवार्य है। अब अदालत के फैसले के बाद यह नियम सभी कॉलेज/यूनिवर्सिटी पर लागू होंगे।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसने विश्वविद्यालयों को सितंबर में टर्म-एंड परीक्षा के लिए उपस्थित नहीं होने वाले छात्रों के लिए संभव होने पर "विशेष परीक्षा के लिए" परीक्षा आयोजित करने की अनुमति भी दी है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
यूजीसी ने पहले कहा था कि परीक्षाओं के बारे में स्थिति जानने के लिए विश्वविद्यालयों से संपर्क किया गया था और 818 विश्वविद्यालयों (121 डीम्ड विश्वविद्यालयों, 291 निजी विश्वविद्यालयों, 51 केंद्रीय विश्वविद्यालयों और 355 राज्य विश्वविद्यालयों) से प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई थीं।
केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने गुरुवार को कहा कि 17 लाख से अधिक उम्मीदवार जेईई और एनईईटी के लिए अपने एडमिट कार्ड पहले ही डाउनलोड कर चुके हैं और इससे पता चलता है कि छात्र किसी भी कीमत पर परीक्षा देना चाहते हैं। हालांकि सोशल मीडिया पर जेईई, नीट 2020 के साथ यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में फाइनल ईयर के एग्जाम का विरोध आज भी ट्रेंडिंग में रहा। ट्रेंड हो रहे हैशटैग पर लाखों की संख्या में ट्विट्स भी हो रहे हैं।
UGC का कहना है कि राज्य परीक्षाओं को स्थगित करने की मांग तो कर सकते हैं, मगर बगैर परीक्षा के किसी भी हाल में डिग्री नहीं दी जा सकती। आयोग प्रोमोटेड छात्रों को डिग्री नहीं देगा, इसलिए परीक्षा कराना अनिवार्य है।
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, 92 प्रतिशत छात्र यह चाहते हैं कि परीक्षाएं रद्द हों और इंटरनल एग्जाम्स के आधार पर ही छात्रों का रिजल्ट तैयार किया जाए।
उत्तराखंड के हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने अंतिम सेमेस्टर की UG/ PG परीक्षाएं स्थगित कर दी थीं। यह मामला सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले का है।
राज्य आपदा प्रबंधन अधिकारियों द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत लिए गए निर्णय अंतिम परीक्षा आयोजित करने के लिए 30 सितंबर, 2020 की समय सीमा के संबंध में यूजीसी के दिशा-निर्देशों पर आधारित होंगे।
शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्यों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए 30 सितंबर तक परीक्षा आयोजित करनी चाहिए, और अगर किसी भी राज्य को लगता है कि वे परीक्षा आयोजित नहीं कर सकते हैं, तो उन्हें अपनी चिंताओं के साथ यूजीसी से संपर्क करना होगा।
राज्यों और विश्वविद्यालयों को छात्रों को प्रमोट करने के लिए और डिग्री प्रदान करने के लिए परीक्षा आयोजित करनी होगी, और यह कि आंतरिक मूल्यांकन यूजीसी की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करेंगे।
31 याचिकाकर्ताओं में से एक छात्र का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव है। जिसने यूजीसी से सीबीएसई मॉडल को अपनाने और मूल्यांकन के आधार पर ग्रेस मार्क्स से संतुष्ट नहीं होने वाले छात्रों के लिए बाद की तारीख में एक परीक्षा आयोजित करने की मांग की थी।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के संयुक्त सचिव और NSUI के प्रभारी रुचि गुप्ता ने कहा कि NSUI इस बात से निराश है कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए मनमाने और अतार्किक यूजीसी दिशानिर्देशों को बरकरार रखा है। उन्होंने #AntiStudentModiGovt हैशटैग के साथ ट्वीट किया।
सुप्रीम कोर्ट ने डीएम एक्ट के तहत विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि अंतिम वर्ष की परीक्षाओं के बिना छात्रों को प्रोमोट नहीं किया जा सकता।
शिव सेना की युवा शाखा, युवा सेना, शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ताओं में से एक है और उसने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के निर्देश, COVID -19 महामारी के दौरान परीक्षा आयोजित कराने पर सवाल उठाया है।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के यूजीसी के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने ट्विट कर कहा- 'मैं अंतिम वर्ष की परीक्षा के आयोजन के पक्ष में माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का स्वागत करता हूं। इससे छात्रों को योग्यता के आधार पर आगे प्रवेश प्राप्त करने में मदद मिलेगी। अब, मुझे उम्मीद है, अनावश्यक विवाद खत्म हो जाएगा।'
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने पहले शीर्ष शीर्ष अदालत को बताया था कि उसके 6 जुलाई के निर्देश, विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षा आयोजित करने के लिए कहते हैं, यह "डिक्टेट नहीं" है, लेकिन राज्य, बिना परीक्षाओं के डिग्री की मांग नहीं कर सकते। यही बात आज सुप्रीम कोर्ट ने भी दोहराई है।
सीएम ने कहा कि छात्रों से अनुरोध पर विचार करने और उनके कल्याण पर विचार करने के बाद निर्णय लिया गया। यह फैसला एक उच्च स्तरीय समिति ने लिया है। मूल्यांकन प्रक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है और छात्रों को मूल्यांकन और पदोन्नति मानदंडों पर विश्वविद्यालयों के साथ जांच करनी चाहिए।