यूनियन कैबिनेट ने 29 जुलाई को देश में नई शिक्षा नीति लागू किए जाने को हरी झंडी दे दी है। तीन दशक बाद नई शिक्षा निति लागू होने से देश की शिक्षा व्यवस्था में बुनियादी सुधार होंगे। बुधवार को मंजूर की गई नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में आमूलचूल बदलाव का खाका तैयार किया गया है जिसमें बोर्ड परीक्षा को सरल बनाने और छात्रों पर से पाठ्यक्रम का बोझ कर करने पर जोर दिया जाएगा। अगले दशक में वोकेशनल एजुकेशन को चरणबद्ध तरीके से सभी स्कूलों और उच्च शिक्षा संस्थानों में इंटीग्रेट किया जाएगा।
NEP: TET, बीएड कोर्सेज और टीचर्स भर्ती प्रक्रिया में बदलाव
2025 तक, स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50% शिक्षार्थियों की वोकेशनल एजुकेशन तक पहुंच होगी, जिसके लिए लक्ष्य और समयसीमा के साथ एक स्पष्ट कार्य योजना विकसित की जाएगी। नई शिक्षा नीति के तहत 2030 तक देश के 100 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा में नामांकन कराने का लक्ष्य रखा गया है। अभी भी गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे बेसिक शिक्षा से वंचित हैं जिन तक शिक्षा का प्रसार बेहद जरूरी है। विस्तृत जानकारी के लिए इस पेज पर बने रहें।
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Highlights
29 जुलाई को मंजूर की गई नई शिक्षा नीति में स्कूली शिक्षा में आमूलचूल बदलाव का खाका तैयार किया गया है जिसमें बोर्ड परीक्षा को सरल बनाने और छात्रों पर से पाठ्यक्रम का बोझ कर करने पर जोर दिया जाएगा। स्कूली पाठ्यक्रम को अब 10+2 की जगह 5+3+3+4 की नई पाठ्यक्रम संरचना लागू की जाएगी।
सार्वजनिक और निजी एचईआई के लिए, सामान्य मानदंड दिए जाएंगे। इसका मतलब यह है कि शुल्क नियामक ढांचे के भीतर तय किया जाएगा और कैप से ज्यादा कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा।
अब टीचिंग और लर्निंग को ज्यादा इंटरैक्टिव बनाने पर जोर दिया जाएगा और पुराने तरीकों को बदला जाएगा, जिसमें केवल लेक्चर होते हैं. नये कोर्स कंटेंट में की – कांसेप्ट्स, आइडियाज, एप्लीकेशंस और प्रॉब्लम सॉल्विंग एटीट्यूड पर अधिक फोकस किया जाएगा.
हर स्टेज पर एक्सपीरियेंशियल लर्निंग को शामिल किया जाएगा। यानी केवल किताबों से पढ़ने के बजाय उसे कर के सीखना या कनवेंशनल मैथड्स को छोड़कर दूसरे तरीकों से पढ़ाना। जैसे स्टोरी टेलिंग, स्पोर्ट्स के माध्यम से सीखना, आर्ट्स को शामिल करना आदि। टिपिकल क्लासेस कंडक्ट करने के बजाय स्टूडेंट की कंपीटेंसी बढ़ाने वाले तरीके प्रयोग किए जाएंगे।
विषयों के चयन में उन्हें फ्लेक्सिबिलिटी दी जाएगी खासकर फिजिकल एजुकेशन, आर्ट एंड क्राफ्ट्स और वोकेशनल स्किल्स के मामले में. क्यूरीकुलर, एक्स्ट्रा क्यूरिकुलर और को-क्यूरिकुलर में ज्यादा अंतर नहीं रखा जाएगा साथ ही स्ट्रीम्स को लेकर भी सख्ती नहीं बरती जाएगी।
स्कूल शिक्षा के सभी चार स्टेजेस को छोटे सेमेस्टर्स या ऐसे ही किसी और सिस्टम में बदला जा सकता है ताकि मॉड्यूल छोटे हों और लंबे चलने के बजाय जल्दी खत्म हों.
फिजिकल एजुकेशन, आर्ट एंड क्राफ्ट्स और वोकेशनल स्किल्स को साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स की ही तरह शुरू से आखिरी तक स्कूल क्यूरिकुलम में शामिल किया जाएगा। कुल मिलाकर अब पढ़ाई के साथ ही खेलकूद अथवा आर्ट एंड क्राफ्ट वाले क्रिएटेव स्टूडेंट्स को भी उनके टैलेंट के लिए प्रमुखता दी जाएगी. खेलोगे-कूदोगे बनोगे खराब वाला फंडा अब नहीं चलेगा.
नई शिक्षा नीति में उच्च शिक्षा को लेकर कई बड़े बदलाव किए गए हैं। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने बताया कि उच्च शिक्षा में यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह एक नियामक होगा। कॉलेजों को स्वायत्ता (ग्रेडेड ओटोनामी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा। भारतीय उच्चतर शिक्षा परिषद (HECI) में विभिन्न भूमिकाओं को पूरा करने के लिए कई कार्यक्षेत्र होंगे।
एक 'मेटा-मान्यता प्राप्त निकाय' होगी, जिसे राष्ट्रीय प्रत्यायन परिषद (NAC) कहा जाता है। संस्थानों का प्रत्यायन मुख्य रूप से बुनियादी मानदंडों, सार्वजनिक स्व-प्रकटीकरण, सुशासन, और परिणामों पर आधारित होगा, और इसे (NAC) द्वारा निगरानी और देखरेख करने वाले मान्यता प्राप्त संस्थानों के एक स्वतंत्र पारिस्थितिकी तंत्र द्वारा किया जाएगा।
मैथमेटिकल थिंकिंग, साइंटिफिक टेंपर कोर्स का हिस्सा होंगे। खेल, व्यावसायिक, कला, वाणिज्य, विज्ञान जैसे सह-पाठ्यक्रम विषय समान स्तर पर होंगे। छात्र अपनी पसंद के अनुसार पाठ्यक्रम चुन सकते हैं। कक्षा 6 से छात्रों को कोडिंग की अनुमति दी जाएगी।
इंडियन साइन लैंग्वेजेस को अब पूरे भारत में मानकीकृत किया जाएगा. इसके लिए देश और राज्य के स्तर पर और स्टडी मैटीरियल बनाया जाएगा ताकि वे स्टूडेंट्स जिन्हें सुनने में समस्या है, वे इसका इस्तेमाल करके अपनी पढ़ाई आसानी से कर सकें. इसके साथ ही यह सुनिश्चित किया जाएगा कि उनके पढ़ने के लिए मैटीरियल कम न पड़े और हर जगह आसानी से पठन सामग्री उपलब्ध हो.
नई नीति में, शिक्षकों को उच्च-गुणवत्ता की सामग्री और शिक्षाशास्त्र में प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। जैसे-जैसे कॉलेज / विश्वविद्यालय बहु-विषयक बनने की दिशा में आगे बढ़ते हैं, उनका लक्ष्य बीएड, एमएड, और पीएचडी की पेशकश करने वाले उत्कृष्ट शिक्षा विभागों को भी पूरा करना होगा।
पहले की तरह अब भारी बस्तों के साथ बच्चों को स्कूल न जाना पड़े इस बाबत कदम उठाये जाएंगे. साल में कई बार बैगलेस डेज़ लाने की परंपरा को प्रोत्साहित किया जाएगा. इससे बच्चे दूसरी एक्टिविटीज जैसे आर्ट्स, क्विज, स्पोर्ट्स आदि में थोड़ा और समय दे पाएंगे.
स्पेशली ऐबल्ड स्टूडेंट्स के लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगे, जिसके अंतर्गत फंडामेंटल स्टेज से लेकर हायर एजुकेशन तक हर स्टेज पर उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सके। इनकी विशेष जरूरतों को पूरा करने के लिए विशेष प्रबंध किए जाएंगे। इसमें टेक्नोलॉजी बेस्ड टूल्स, सपोर्ट मैकेनिज्म, रिसोर्स सेंटर का निर्माण, असिस्टिव डिवाइसेस का प्रबंध आदि शामिल होगा।
हायर एजुकेशन कमीशन ऑफ इंडिया (HECI) को सेटअप किया जाएगा. यह पूरे हायर एजुकेशन सिस्टम के लिए एक सिंग्ल बॉडी होगी, जिसके पास हर तरह की अथॉरिटी रहेगी. इसके अंतर्गत मेडिकल और लीगल एजुकेशन नहीं आएंगे. एचईसीआई के पास चार स्वतंत्र कार्यक्षेत्र होंगे जो अलग-अलग क्षेत्रों में काम करेंगे.
भाषा, साहित्य, संगीत, फिलॉसफी, कला, नृत्य, रंगमंच, शिक्षा, गणित, स्टैटिक्स, प्योर एंड अप्लाईड साइंस, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, खेल, अनुवाद और व्याख्या, आदि विभागों को सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थापित और जोर दिया जाएगा।
इससे पहले राजीव गांधी के कार्यकाल में 1986 में नई शिक्षा नीति को लागू किया गया था। जिसमें 1992 में कुछ संशोधन किए गये थे। इस हिसाब से 34 साल बाद भारत देश में नई शिक्षा नीति लागू हो रही है। इस नई शिक्षा नीति का मसौदा इसरो के प्रमुख के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों ने तैयार किया है।
इस नई शिक्षा नीति का लक्ष्य 3 से 18 आयु वर्ग के सभी बच्चों को 2030 तक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना है। नई शिक्षा निति में अब जीडीपी का छह प्रतिशत शिक्षा में खर्च किया जाएगा। इससे पहले जीडीपी का 4.43 प्रतिशत शिक्षा में खर्च होता था।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
नई शिक्षा नीति के तहत 2030 तक देश के 100 प्रतिशत बच्चों को स्कूली शिक्षा में नामांकन कराने का लक्ष्य रखा गया है। अभी भी गरीब और पिछड़े वर्ग के बच्चे बेसिक शिक्षा से वंचित हैं जिन तक शिक्षा का प्रसार बेहद जरूरी है।
10वीं और 12वीं कक्षओं के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी मगर कोचिंग कक्षाओं की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए बोर्ड और प्रवेश परीक्षाओं की मौजूदा प्रणाली में सुधार किया जाएगा। छात्रों के समग्र विकास को प्रोत्साहित करने के लिए बोर्ड परीक्षा को फिर से डिज़ाइन किया जाएगा। छात्र अब नई नीति के अनुसार उन विषयों का खुद चुनाव कर सकेंगे जिनके लिए वे बोर्ड परीक्षा देना चाह रहे हैं।
उच्च शिक्षा में 3.5 करोड़ नई सीटों को जोड़ा जाएगा। वहीं Gross Enrolment Ratio को 2035 तक पचास फीसदी करने का लक्ष्य है। 2018 के आकड़ों के अनुसार Gross Enrolment Ratio 26.3 प्रतिशत था।
Allahabad High Court Recruitment 2020: बता दें कि कुल 102 पद इस भर्ती अभियान के माध्यम से भरे जाने हैं। लॉ क्लर्क ट्रेनी के पदों पर उम्मीदवारों को भर्ती किया जाएगा तथा अंतिम रूप से चयनित होने पर उम्मीदवारों को 15,000/- रुपए प्रतिमाह के मासिक वेतन पर नौकरी पर रखा जाएगा। नोटिफिकेशन में इस संबंध में पूरी जानकारी मौजूद है।
हुड केयर एवं एजुकेशन के लिए कैरिकुलम एनसीईआरटी द्वारा तैयार होगा। इसमें 3 से 6 वर्ष के बच्चों के लिए विकसित किया जाएगा। बुनियाद शिक्षा (6 से 9 वर्ष के लिए) के लिए फाउंडेशनल लिट्रेसी एवं न्यूमेरेसी पर नेशनल मिशन शुरु किया जाएगा। पढ़ाई की रुपरेखा 5+3+3+4 के आधार पर तैयारी की जाएगी। इसमें अंतिम 4 वर्ष 9वीं से 12वीं शामिल हैं।
नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद छात्रों को आजादी होगी की अगर वे किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में प्रवेश लेना चाहते हैं तो वे पहले कोर्स से एक निश्चित समय का ब्रेक ले सकते हैं।
स्नातक में प्रवेश लेने के बाद तीन साल पढ़ाई करना अनिवार्य नहीं होगा। नई शिक्षा निति लागू होने के बाद स्नातक 3 से 4 साल तक होगा। इस बीच किसी भी तरह से अगर बीच में छात्र पढ़ाई छोड़ता है तो उसका साल खराब नही होगा। एक साल तक पढ़ाई करने वाले छात्र को प्रमाणपत्र, दो साल पढ़ाई करने वाले को डिप्लोमा और कोर्स की पूरी अवधि करने वाले को डिग्री प्रदान की जाएगी।
बोर्ड परीक्षा के नंबरों का महत्व अब कम होगा जबकि कॉन्सेप्ट और प्रैक्टिकल नॉलेज का महत्व ज्यादा होगा। सभी छात्रों को किसी भी स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए। छात्र दूसरी बार परीक्षा देकर अपने नंबर सुधार भी सकेंगे।
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम पर, शिक्षा नीति में कहा गया है, “जहां भी संभव हो, निर्देश का माध्यम कम से कम ग्रेड 5 तक, मातृभाषा / स्थानीय भाषा / क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद, स्थानीय भाषा को जहाँ भी संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। यह नियम सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल में लागू होंगे।"
राजनीतिक दलों द्वारा विरोध के बाद, थ्री-लैंग्वेज फार्मूले के बारे में NEP के मसौदे में हिंदी और अंग्रेजी के संदर्भ को अंतिम नीति दस्तावेज से हटा दिया गया है। नीति में कहा गया है, "बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद होंगी, इसके लिए तीन में से कम से कम दो भाषाएं भारतीय मूल की होनी चाहिए।"
10वीं और 12वीं कक्षओं के लिए बोर्ड परीक्षाएं जारी रहेंगी मगर कोचिंग कक्षाओं की आवश्यकता को समाप्त करने के लिए बोर्ड और प्रवेश परीक्षाओं की मौजूदा प्रणाली में सुधार किया जाएगा। छात्रों के समग्र विकास को प्रोत्साहित करने के लिए बोर्ड परीक्षा को फिर से डिज़ाइन किया जाएगा। छात्र अब नई नीति के अनुसार उन विषयों का खुद चुनाव कर सकेंगे जिनके लिए वे बोर्ड परीक्षा देना चाह रहे हैं।
NEP ने भारतीय उच्च शिक्षा के दरवाजे विदेशी विश्वविद्यालयों तक खोलने, यूजीसी और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) को खत्म करने, कई वर्षों के विकल्प के साथ चार वर्षीय बहु-विषयक स्नातक कार्यक्रम की शुरूआत और M.Phil कार्यक्रम बंद करने सहित कई व्यापक बदलावों का प्रस्ताव किया है।
एक नया शिक्षा नीति आमतौर पर हर कुछ दशकों में आती है। नई शिक्षा नीति भारत में 3 दशक बाद आई है। पहला 1968 में और दूसरा 1986 में क्रमशः इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के समय में तथा तीसरी नीति अब नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री काल में बुधवार को स्वीकृत की गई है।
एक शिक्षा नीति देश में शिक्षा के विकास का मार्गदर्शन करने के लिए एक व्यापक ढांचा है। नीति की आवश्यकता पहली बार 1964 में महसूस की गई थी, जब कांग्रेस के सांसद सिद्धेश्वर प्रसाद ने शिक्षा के लिए एक दृष्टि और दर्शन की कमी के लिए तत्कालीन सरकार की आलोचना की थी। उसी वर्ष, एक 17-सदस्यीय शिक्षा आयोग, जिसकी अध्यक्षता यूजीसी के अध्यक्ष डी एस कोठारी ने की थी, का गठन शिक्षा पर एक राष्ट्रीय और समन्वित नीति का मसौदा तैयार करने के लिए किया गया था। इस आयोग के सुझावों के आधार पर, संसद ने 1968 में पहली शिक्षा नीति पारित की।
अभी लागू शिक्षा नीति के अनुसार किसी छात्र को शोध करने के लिए स्नातक, एमफिल और उसके बाद पी.एचडी करना होता था। परंतु नई शिक्षा नीति के लागू होने के बाद जो छात्र शोध क्षेत्र में जाना चाहते हैं वे चार साल के डिग्री प्रोग्राम के बाद सीधे पीएचडी या डीफिल में प्रवेश ले सकते हैं। वहीं जो छात्र नौकरी करना चाहते हैं उनके लिए वही डिग्री कोर्स तीन साल में पूरा हो जाएगा। वहीं शोध को बढ़ृावा देने के लिए और गुणवत्ता में सुधार के लिए नेशनल रिसर्च फाउनंडेशन की भी स्थापना की जाएगी।
2013 में शुरू की गई BVoc डिग्री अब भी जारी रहेगी, लेकिन चार वर्षीय बहु-विषयक (multidisciplinary) बैचलर प्रोग्राम सहित अन्य सभी बैचलर डिग्री कार्यक्रमों में नामांकित छात्रों के लिए वोकेशनल पाठ्यक्रम भी उपलब्ध होंगे। ‘लोक विद्या’, अर्थात, भारत में विकसित महत्वपूर्ण व्यावसायिक ज्ञान, व्यावसायिक शिक्षा पाठ्यक्रमों में एकीकरण के माध्यम से छात्रों के लिए सुलभ बनाया जाएगा।
भाषा, साहित्य, संगीत, फिलॉसफी, कला, नृत्य, रंगमंच, शिक्षा, गणित, स्टैटिक्स, प्योर एंड अप्लाईड साइंस, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, खेल, अनुवाद और व्याख्या, आदि विभागों को सभी उच्च शिक्षा संस्थानों में स्थापित और जोर दिया जाएगा।
नई शिक्षा नीति में बदलाव करते हुए हाईयर एजुकेशन और व्यापक शिक्षा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित की गई है। इसके जरिए भारत का लगातार विकास सुनिश्चित होगा साथ ही वैश्विक मंचों पर आर्थिक विकास, सामाजिक विकास, समानता और पर्यावरण की देख-रेख, वैज्ञानिक उन्नति और सांस्कृतिक संरक्षण के नेतृत्व का समर्थन करेगा।
राजनीतिक दलों द्वारा विरोध के बाद, थ्री-लैंग्वेज फार्मूले के बारे में NEP के मसौदे में हिंदी और अंग्रेजी के संदर्भ को अंतिम नीति दस्तावेज से हटा दिया गया है। नीति में कहा गया है, "बच्चों द्वारा सीखी जाने वाली तीन भाषाएं राज्यों, क्षेत्रों और छात्रों की पसंद होंगी, इसके लिए तीन में से कम से कम दो भाषाएं भारतीय मूल की होनी चाहिए।"
स्कूलों में शिक्षा के माध्यम पर, शिक्षा नीति में कहा गया है, “जहां भी संभव हो, निर्देश का माध्यम कम से कम ग्रेड 5 तक, मातृभाषा / स्थानीय भाषा / क्षेत्रीय भाषा होगी। इसके बाद, स्थानीय भाषा को जहाँ भी संभव हो भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहेगा। यह नियम सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के स्कूल में लागू होंगे।"
बोर्ड परीक्षा के नंबरों का महत्व अब कम होगा जबकि कॉन्सेप्ट और प्रैक्टिकल नॉलेज का महत्व ज्यादा होगा। सभी छात्रों को किसी भी स्कूल वर्ष के दौरान दो बार बोर्ड परीक्षा देने की अनुमति दी जाएगी। एक मुख्य परीक्षा और एक सुधार के लिए। छात्र दूसरी बार परीक्षा देकर अपने नंबर सुधार भी सकेंगे।