नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (NCERT) ने अपनी कक्षा 9 इतिहास की किताबों में से तीन चैप्टर हटा दिए हैं, जिसमें एक चैप्टर ऐसा भी है जो त्रावणकोर की तथाकथित ‘निचली जाति’ नादर महिलाओं के संघर्षों के माध्यम से जातिगत संघर्ष को दिखाता है, जिन्हें उनके शरीर के ऊपरी हिस्से हो खुला रखने के लिए मजबूर किया गया था। भारत और समकालीन विश्व – I शीर्षक वाली पाठ्यपुस्तक से लगभग 70 पेज हटाने का निर्णय, छात्रों पर बोझ को कम करने के लिए किया गया है। यह मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा शुरू किए गए पाठ्यक्रम को बेहतर बनाने के अभ्यास का हिस्सा है। यह सरकार की अगुवाई में की गई दूसरी पाठ्यपुस्तक समीक्षा है। नया शैक्षिक सत्र शुरू होने से पहले, संशोधित किताबें इसी महीने आएंगी। 2017 में NCERT ने 182 किताबों में 1,334 बदलाव किए, जिसमें करेक्शन और डेटा अपडेट शामिल थे।
हटाए गए तीन चैप्टरों में से, एक (वस्त्र: एक सामाजिक इतिहास) कपड़ों पर है, सामाजिक आंदोलनों ने कैसे कपड़े पहने को प्रभावित किया इस पर है। दूसरा चैप्टर (इतिहास और खेल: क्रिकेट की कहानी) भारत में क्रिकेट के इतिहास और जाति, क्षेत्र और समुदाय की राजनीति से इसके कनेक्शन पर है। तीसरा अध्याय (खेतिहर और किसानों) पूंजीवाद के विकास पर केंद्रित है और उपनिवेशवाद ने खेतिहर और किसानों के जीवन को कैसे बदल दिया।
‘वस्त्र: एक सामाजिक इतिहास’ किताब का आखिरी चैप्टर है। यह दर्शाता है कि इंग्लैंड और भारत में कपड़ों में बदलाव उनके सामाजिक आंदोलनों द्वारा कैसे आकार लेते हैं। इसका सेक्शन ‘जाति संघर्ष और पोशाक परिवर्तन ’, जो कि भारत में अतीत में भोजन और पोशाक के संबंध में सख्त सामाजिक कोड पर है, ने 2016 में तब सुर्खियां बटोरीं, जब राजनेताओं ने दक्षिण भारत में ‘अपर क्लॉथ विद्रोह’ के संदर्भ में आपत्ति जताई।
शनार को बाद में नादर्स के नाम से जाना जाता था, उन्हें “अधीनस्थ जाति” माना जाता था। इसके पुरुषों और महिलाओं से अपेक्षा की जाती थी कि वे स्थानीय रीति रिवाज को फॉलो करें। वे छतरियों का उपयोग न करें, जूते और सोने के गहने न पहनें और प्रमुख जातियों के सामने अपने ऊपरी शरीर को न ढकें। हालांकि, ईसाई मिशनरियों के प्रभाव में, शनार महिलाओं ने ब्लाउज पहनना शुरू कर दिया।

