अब केंद्रीय विश्वविद्यालयों के एम. फिल और पीएचडी कोर्स में दाखिला लेने के लिए विद्यार्थियों को इंटरव्यू पैनल की दया पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के साल 2016 के एक नियम में बदलाव करने वाली है। द प्रिंट की रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ‘एमफिल/पीएचडी डिग्री की न्यूनतम मानक और प्रकिया नियामक 2018’ में दूसरा सुधार करने वाली है। इस नियम के तहत प्रवेश परीक्षा में छात्र को 70 फीसदी अंक मिलेंगे जबकि बाकी के 30 फीसदी अंक इंटरव्यू में मिलेंगे। वर्तमान में लिखित परीक्षा से अभ्यर्थी सिर्फ इंटरव्यू के लिए ही योग्य हो पाता है। बाद में इंटरव्यू से ही विद्यार्थी को एम. फिल और पीएचडी कोर्स में दाखिला देने या देने का फैसला किया जाता है।
सूत्रों का कहना है कि मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस सुधार को मंजूर दे दी है और ये इसी हफ्ते जारी हो सकता हैं। मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब एम. फिल और पीएचडी की प्रवेश परीक्षा में लिखित परीक्षा के लिए 70 फीसदी जबकि इंटरव्यू में सिर्फ 30 फीसदी अंक ही विद्यार्थी को मिलेंगे। सभी विश्वविद्यालयों को जल्दी ही इस बारे में सूचित कर दिया जाएगा।
दिल्ली विश्वविद्यालय और जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय समेत सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने साल 2017 में ये नियम लागू किया था। नियम के मुताबिक, साल 2016 के यूजीसी के नियम के तहत एम. फिल और पीएचडी में दाखिला लेने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य होगा कि इंटरव्यू में वे कम से कम 50 फीसदी अंक हासिल करें।
हालांकि कई विद्यार्थियों ने इस कदम के खिलाफ प्रदर्शन किया था। उनका ये कहना था कि ये फैसला भेदभावपूर्ण है। रिपोर्ट के मुताबिक, वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कई विद्यार्थियों, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले विद्यार्थियों का ये आरोप था कि टेस्ट में अच्छे अंक लाने के बावजूद वह अक्सर इंटरव्यू के स्तर पर नकार दिए जाते हैं क्योंकि उनके पास अच्छी कम्यूनिकेशन स्किल नहीं है।
24 मई को बुलाई गई मीटिंग में यूजीसी ने परीक्षा में हासिल किए अंक को ही प्रधान मानने का फैसला किया था और एससी/एसटी/ओबीसी वर्ग से आने वाले अभ्यर्थियों के लिए लिखित परीक्षा के परिणाम में 5 प्रतिशत अंक की राहत दी थी। हालांकि इस सूचना के तहत किए गए पहले सुधार में 70-30 फीसदी वाला दायरा शामिल नहीं था।