दिल्ली विश्वविद्यालय का मौजूदा दाखिला सत्र कैंपस की परंपरागत चहल-पहल से दूर रहा। आॅनलाइन व्यवस्था ने आवेदन प्रक्रिया के दौरान कैंपस को सूना कर दिया था, रही-सही कसर कटआॅफ के ‘न घटने की जिद’ ने पूरी कर दी। दाखिले के लिए करीब सवा दो लाख छात्र कतार में हैं लेकिन दाखिले की खिड़कियों पर इक्के-दुक्के लोग पहुंच रहे हैं। दाखिला सत्र की चहल-पहल कॉलेजों से नदारद है। छात्र संगठनों के हेल्प डेस्क सूने पड़े हैं।

दूसरी कटआॅफ में उत्तरी परिसर में ज्यादातर कॉलेजों में चर्चित पाठ्कक्रमों में 0.50 फीसद से 0.75 फीसद तक की ही गिरावट दर्ज की गई। कैंपस में चर्चा आम है कि बेस्ट फोर का अंकन का गणित विश्वविद्यालय ने छात्रों को तो समझा दिया लेकिन कटआॅफ का गणित क्यों नहीं सुलझाते? दाखिले की इस आॅनलाइन शुरुआत और कटआॅफ के न घटने के मुद्दे पर दबी जुबान से ही सही छात्र नेताओं की प्रतिक्रिया उनकी स्थिति बता देती है। दरअसल, छात्रों की मदद के लिए हेल्प डेस्क स्थापित किए जाने की प्रासंगिकता पर एक छात्र नेता ने कहा, ‘यह निर्देश का हिस्सा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने प्रवेश से जुड़ी जानकारियां उपलब्ध कराने के लिए सभी विश्वविद्यालयों को चौबीसों घंटे हेल्पलाइन स्थापित करने को कहा है। दूसरी ओर चुनाव (डूसू) है ही। आॅनलाइन और कटआॅफ पर डीयू के रुख ने सारा खेल बिगाड़ दिया’।

एक अन्य छात्र नेता ने कहा कि सोचा था कि दाखिले के आवेदन की प्रक्रिया खत्म होने के बाद जब छात्र कॉलेज आएंगें तब शायद हेल्प डेस्क प्रासंगिक होगा, लेकिन यह हो नहीं सका। विश्वविद्यालय प्रशासन का कहना है कि कटआॅफ तय करना कालेजों के जिम्मे है। वे अपने यहां आए आवेदनों, दाखिलों और बची सीटों के हिसाब से कटआॅफ तय करते हैं। दर्जनों कालेजों के चर्चित पाठ्यक्रमों में मात्र 0.50 फीसद से 0.75 फीसद की गिरावट को छात्रों के साथ मजाक के कथित आरोप का बचाव करते हुए डीन कार्यालय के शिक्षकों का कहना है कि कॉलेजों की अपनी मजबूरी है। कटआॅफ में आने वालों को दाखिला से मना नहीं करने के निर्देश हैं। उन्हें दाखिला देना ही है। कई पाठ्यक्रमों में आबंटित सीटों से दो गुने तक के दाखिले हुए हैं। लिहाजा चर्चित पाठ्यक्रमों में कटआॅफ ज्यादा नीचे लाना अव्यावहारिक होगा और यह शायद संभव नहीं है। हां, कुछ गैर चर्चित पाठ्यक्रम में कटआॅफ जरूर नीचे आएगी।