अब खेल केवल मैदान में ही नहीं खेला जाता है बल्कि बच्चों को घर में बैठकर स्मार्टफोन और कंप्यूटर पर गेम खेलना अधिक अच्छा लगता है। तकनीक के विकसित होने से इस क्षेत्र में नए करिअर विकल्पों में बढ़ोतरी हुई है। इन्हीं विकल्पों में से एक विकल्प है डिजिटल गेम डेवलपिंग का। आज बच्चे खो-खो या कबड्डी जैसे खेलों से परिचित हों या न हों लेकिन वाइससिटी, फीफा-13, मोटररेस, स्पेसवार जैसे डिजिटल गेमों से वे अच्छी तरह वाकिफ होते हैं। स्मार्टफोन और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स का इस्तेमाल बढ़ने से गेमिंग उद्योग के विकास में काफी तेजी आई है। ऑनलाइन डिजिटल गेमिंग उद्योग में प्रतिभावान युवाओं की मांग दिनोंदिन बढ़ रही है। अगर आप भारत के डिजिटल गेमिंग उद्योग में अवसर तलाश रहे हैं तो यह बिलकुल सही समय है। अगर खेल आपका शौक है और खेलों को लेकर आपके मन में हमेशा कुछ नए विचार आते रहते हैं तो फिर डिजिटल गेम डेवलपिंग आपके लिए एक अच्छा करिअर हो सकता है।
क्या है गेम डेवलपिंग
गेम डेवलपिंग का काम सॉफ्टवेयर डेवलमेंट का एक हिस्सा है। इसमें कंटेट की डिजाइनिंग के साथ ही गेम के नियम भी तय करने होते हैं। इसमें मैकेनिक्स, प्रोग्रामिंग और विजुअल आर्ट भी शामिल है। यह एक टीम वर्क होता है, जिसमें सॉफ्टवेयर डिजाइन से लेकर स्क्रिप्ट राइटिंग और एनिमेशन तक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। गेम डेवलपिंग के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के खेलों को कंप्यूटर में डिजाइन कर चिप में डालकर विभिन्न इंटरटेनमेंट डिवाइस में उपयोग किया जाता है। इन गेमों का निर्माण मल्टीमीडिया, ग्राफिक्स सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के इस्तेमाल द्वारा किया जाता है। सही मायनों में देखा जाए तो यह करिअर प्रौद्योगिकी रचनात्मकता और मनोरंजन का अनूठा संगम है। डिजिटल गेम उद्योम तीन प्रकार की होती है- गेमिंग कंसोल, जिसके अंर्तगत सेट टॉप बॉक्स गेम, टीवी गेम्स आदि आते हैं। दूसरी श्रेणी कंप्यूटर गेम्स की है। तीसरी है कैजुअल गेम्स, इसके तहत मोबाइल गेम और सोशल मीडिया गेम आते हैं।
अरबों डॉलर का है कारोबार
मनोरंजन उद्योग का एक बड़ा भाग गेमिंग, जो वर्तमान में दुनियाभर में अरबों डॉलर का व्यवसाय है। कंप्यूटर, मोबाइल और अन्य गैजेट्स की बढ़ती मांग के कारण गेमिंग डेवलपर की मांग भी बढ़ गई है। इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के कारण ऑनलाइन गेमिंग की मांग भी बढ़ी है। फिक्की केपीएमजी की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2011 के अंत तक, यह उद्योग करीब 1,300 करोड़ रुपए का था। एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 2012 में यह उद्योग 200 करोड़ रुपए बढ़कर 1500 करोड़ रुपए का हो गया था। वर्तमान में भारत में 50 हजार गेमिंग पेशेवरों की आवश्यकता है। भारत के गेमिंग उद्योग में सोनी, इरोज इंटरनेशनल जैसी कंपनियां दस्तक दे चुकी हैं और कई नई कंपनियां आ रही हैं।
गेम डेवलपर बनने के लिए स्नातक होना जरूरी
गेम डेवलपर बनने के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता बारहवीं है। गेम डेवलेपिंग में डिप्लोमा या एडवांस डिप्लोमा प्रोग्राम करने के लिए स्नातक होना आवश्यक है। कुछ संस्थान एनीमेशन तथा मल्टीमीडिया के पाठ्यक्रम के दौरान ही गेमिंग की जानकारी देते हैं। पाठ्यक्रम के दौरान ड्राइंग, डिजाइनिंग, प्रोडक्शन, प्रोग्रामिंग, लाइटिंग के साथ-साथ एनिमेशन और डिजीटल आर्ट्स भी सिखाया जाता है। गेम डेवलेपमेंट में लाइफ ड्राइंग तथा स्कल्पचर जैसी कलाओं को समझना जरूरी होता है।
वेतन
इस उद्योग में अलग-अलग काम के हिसाब से अलग-अलग वेतन होता है। शुरुआत में वेतन 12 से 15 हजार रुपए होता है। प्रोग्रामिंग से जुड़े लोगों को शुरू में 25 से 30 हजार रुपए मिल जाते हैं। बढ़ते अनुभव के साथ वेतन भी बढ़ता चला जाता है।
चार चरणों में होता है गेम डिजाइनिंग का काम
डिजिटल गेम डिजाइनिंग का काम चार चरणों में होता है। पहले चरण में गेम की कहानी लिखी जाती है। इसके बाद इसकी स्क्रिप्ट लिखी जाती है। गेम की स्क्रिप्ट में यह तय कर लिया जाता है कि गेम में कौन से पात्र डाले जाएंगे और गेम का दृश्य कैसा होगा। इसके बाद स्टोरी बोर्ड तैयार किया जाता है जिसमें सभी संभावित दृश्यों के फ्रेम बनाए जाते हैं। फिर गेम डेवलेपिंग सॉफ्टवेयर जैसे एडोब फोटोशॉप, फोटोमैक्स, फ्लैश, गेमब्रायो की मदद से एनिमेटेड चित्र बनाए जाते हैं। इसके बाद गेम कैसे काम करेगा और कैसे खेला जाएगा, इन सबसे जुड़ी बातें तैयार होती हैं। तीसरे चरण में गेम को लुक दिया जाता है। आखिरी में प्रोडक्शन और इंजीनियरिंग का काम होता है।
