Republic Day Poem in Hindi 2024 (गणतंत्र दिवस पर कविता 2024): भारत के लिए 26 जनवरी की तारीख काफी मायने रखता है। इसी तारीख को 1950 में भारत का संविधान लागू हुआ था। तब से ही इस तारीख को गणतंत्र दिवस के रूप में पूरे जोश और हर्ष के साथ मनाते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन हम गणराज्य और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के तौर पर अपने देश भारत की ताकत को याद करते हैं। हर साल की तरह इस बार भी गणतंत्र दिवस की देशभर में झूम है। 26 जनवरी को देखते हुए तैयारियां जोरों पर हैं।

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गणतंत्र दिवस के मौके पर पूरे देश में कई तरह के कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं। बात स्कूलों की करें तो देशभर के सरकारी – गैर सरकारी संस्थाओं के साथ ही निजी और सरकारी स्कूलों में भी कई तरह के कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। आगर आप ऐसी हा किसी प्रतियोगिता के तहत गणतंत्र दिवस पर कविता पाठ करना चाहते हैं तो हम आपको कुछ बेहतरीन कविताएं पढ़ा रहे हैं जिन्हें आप इस्तेमाल कर सकते हैं:

  1. 1.एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
  1. इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बंधाए,
  2. कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
  3. इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
  4. और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गंवाए!

किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आजादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
‘जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।’

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
गैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गांठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियां और हथकड़ियां, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहां पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पांव बढ़ाओ,
आजादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।

हल्का फूल नहीं आजादी, वह है भारी जिम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

– हरिवंश राय बच्चन


2. यह मेरा आजाद तिरंगा,
लहर लहर लहराए रे
भारत माँ मुस्काए तिरंगा,
लहर लहर लहराए रे

इस झंडे का बापू जी ने,
कैसा मान बढ़ाया है
लाल किले पर नेहरू जी,
ने यह झंडा फहराया

माह जनवरी छब्बीस को
हम,सब गणतंत्र मनाते
और तिरंगे को फहरा कर
गीत ख़ुशी के गाते.

आज नई सज-धज से
गणतंत्र दिवस फिर आया है।

नव परिधान बसंती रंग का
माता ने पहनाया है।

भीड़ बढ़ी स्वागत करने को
बादल झड़ी लगाते हैं।

रंग-बिरंगे फूलों में
ऋतुराज खड़े मुस्काते हैं।

धरती मां ने धानी साड़ी
पहन श्रृंगार सजाया है।
गणतंत्र दिवस फिर आया है।

भारत की इस अखंडता को
तिलभर आंच न आने पाए।

हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई
मिलजुल इसकी शान बढ़ाएं।

युवा वर्ग सक्षम हाथों से
आगे इसको सदा बढ़ाएं।

इसकी रक्षा में वीरों ने
अपना रक्त बहाया है।

गणतंत्र दिवस फिर आया है।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,
तू है अद्भुत और सुंदर।
तेरी धरती, तेरा आकाश,
तेरी नदियाँ, तेरे पर्वत,
सब ही अविस्मरणीय हैं।

तेरे लोग, तेरे संस्कृति,
तेरी विरासत, तेरा इतिहास,
सब ही गौरवशाली हैं।

तू है सत्य, तू है धर्म,
तू है शांति, तू है अहिंसा।
तू है ज्ञान, तू है दर्शन,
तू है प्रकाश, तू है जीवन।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,
तू है मेरे हृदय में बसता।
मैं तेरा सदैव ऋणी रहूंगा


3. नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आंखें
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं…
तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां
नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं…
वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झांकती हैं
वे आंखें,
मेरे देश की आंखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धारे
क्षिति-रेखा को खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आंखें…
उसने झुकी कमर सीधी की
माथे से पसीना पोछा
डलिया हाथ से छोड़ी
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चांद-चेहरे सुकचाते
में टंकी थकी पलकें उठाईं
और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं
मेरे देश की आंखें…

– अज्ञेय