आज बात मोसाद की उस चूक की जिसके चलते इजराइल का ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड कुछ समय के लिए थम गया था। दरअसल यह ऑपरेशन म्यूनिख ओलंपिक, 1972 में 11 इजराइली खिलाड़ियों को मौत के घाट उतारने वालों से बदला लेने के लिए चलाया गया था। इस घटना के पीछे ब्लैक सेप्टेम्बर और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन का हाथ था।

आपको बता दें कि, 5 सितंबर 1972 को जर्मनी के म्यूनिख शहर में ओलंपिक खेल चल रहे थे। जिसमें ब्लैक सेप्टेम्बर और फिलिस्तीनी आतंकी संगठन के आतंकियों ने 11 इजराइली खिलाड़ियों को बंधक बना लिया। इसी बंधक संकट की आपधापी के बीच दो खिलाड़ियों ने भागने की नाकाम कोशिश की थी, जिन्हें शुरुआत में ही आतंकियों ने मार दिया था। फिर बाद में बचाव अभियान के असफल होने के चलते सभी इजराइली खिलाड़ियों की जान चली गई थी।

इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद म्यूनिख ओलंपिक का मास्टरमाइंड अली हसन सलामेह को मानती थी। हालांकि, म्यूनिख की घटना के कई सालों तक वह अंडरग्राउंड रहा था और नाम बदलकर अलग-अलग देशों में रह रहा था। फिर पता चला था कि वह नार्वे के किसी शहर में है। अभी म्यूनिख हत्याकांड को एक महीने का समय ही बीता था और मोसाद के ऑपरेशन रैथ ऑफ गॉड के जरिए करीब चार संदिग्धों को मारा जा चुका था।

अपने ऑपरेशन को जल्दी पूरा करने और म्यूनिख हमले के गुनाहगारों को निशाना बनाने की चक्कर में मोसाद ने एक चूक कर दी। मोसाद के एजेंट्स को जब पता चला कि ने अली हसन सलामेह नार्वे में है तो टीम हेड को जानकारी दी गई। फिर इस मामले में खोजबीन आगे बढ़ाई गई तो पता चला कि वह नार्वे के लीलेहैमर में है। 21 जुलाई 1973 को मोसाद के एजेंटों ने प्लान के मुताबिक हमला किया लेकिन मोरक्को के एक वेटर अहमद बौचिकी की जान चली गई।

अली हसन सलामेह अभी भी सही सलामत था। वेटर के रूप में काम कर रहे अहमद बौचिकी निर्दोष था, फिर नार्वे पुलिस ने मोसाद के छह एजेंटों को गिरफ्तार कर लिया। टीम हेड माइक हरारी और कुछ अन्य एजेंट भाग निकले। इन छह एजेंट्स में दो महिला एजेंट भी शामिल थी, जिनमें से एक सिल्विया राफेल थी। मोसाद को रत्ती भर एहसास नहीं था कि उनकी सबसे तेज-तर्रार और होशियार एजेंट पकड़ी जाएगी। इस मामले को लीलेहैमर अफेयर के नाम से जाना गया, जिसमें इन एजेंट्स को साढ़े पांच साल की सजा हुई थी।