भारत में सरकारी नौकरी को लेकर पढ़े-लिखे युवाओं में एक अलग क्रेज देखने को मिलता है। ऐसे में अगर कोई सरकारी नौकरी छोड़ दे तो समाज और परिवार भी उसके इस फैसले पर कभी साथ नहीं होता है। आईपीएस अधिकारी प्रेमसुख डेलू की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। प्रेमसुख डेलू का परिवार मूल रूप से राजस्थान के बीकानेर का रहने वाला है। प्रेमसुख बचपन से ही पढ़ाई में बहुत होशियार थे।
ऐसे में वह आईपीएस अधिकारी बनना चाहते थे। साथ ही वह अन्य कई परीक्षाओं में भी भाग लेते थे। करीब छह साल में प्रेमसुख ने 12 परीक्षाएं क्लियर कर दी थी। इन परीक्षाओं से सरकार नौकरी तक पहुंचने का रास्ता साफ होता है। साल 2014 में प्रेमसुख का चयन राजस्थान प्रशासनिक सेवा तक में हो गया था, लेकिन उन्होंने तो कुछ और ही ठान रखी थी। साल 2010 में वह सबसे पहले बीकानेर जिले में पटवारी बने थे।
गुजरात के साफ छवि वाले अधिकारी हैं प्रेमसुख डेलू: परीक्षा पास होने और नौकरी मिलने के बाद भी उन्होंने अपनी तैयारी नहीं छोड़ी और अन्य परीक्षाओं में भी भाग लेते रहे। राजस्थान असिस्टेंट जेल परीक्षा के एग्जाम में भी उन्होंने टॉप किया था। असिस्टेंट जेलर के रूप में जॉइन करने से पहले ही उनका राजस्थान पुलिस में सब-इंस्पेक्टर का रिजल्ट भी आ गया और उनका चयन हो गया था। प्रेमसुख को वर्दी पहनने का शौंक बचपन से ही थी, लेकिन वह तो बड़े अधिकारी की वर्दी में खुद को देखते थे।
प्रेमसुख डेलू ने अपनी तैयारी नहीं छोड़ी और लगातार प्रयास करते रहे। सिविल सर्विस एग्जाम-2015 में प्रेमसुख ने 170 रैंक प्राप्त की थी। प्रेमसुख को केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से प्रेमसुख को गुजरात कैडर अलॉट हुआ था। प्रेमसुख को गुजरात का ‘सिंघम’ भी कहा जाता है। उनकी गिनती ऐसे अधिकारी में होती है जो अपने काम के प्रति पूरी तरह वफादार होते हैं। यही वजह है उनके नाम से ही गुजरात के अपराधी कांपते हैं।
प्रेमसुख डेलू भले ही बचपन से पढ़ाई में बेहद होशियार थे, लेकिन उनका बचपन काफी संघर्ष वाला रहा था। साथ ही परिवार उनके हर फैसले में साथ भी खड़ा रहा। यही वजह है कि वह अपनी कामयाबी का पूरा श्रेय परिवार को देते हैं। प्रेमसुख ने एक इंटरव्यू में कहा था कि माता-पिता के सहयोग के बिना यहां तक पहुंच पाना बिल्कुल भी संभव नहीं था।

