इजरायल की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी मोसाद अपने घातक मिशन और खतरनाक जासूसों के लिए जानी जाती है। इन्ही जासूसों में से एक का नाम था सिल्विया राफेल। सिल्विया अपने अंडरकवर ऑपरेशन के लिए जानी जाती थी। मोसाद अपने ऑपरेशन को पूरा करने में सारी हदें पार कर देती है। माना जाता है कि किसी मिशन में कितने ही साल क्यों न लग जाएं लेकिन मोसाद के एजेंट्स मिशन को अंजाम देकर ही दम लेते हैं।
खुफिया एजेंसी मोसाद के साथ जुड़ी सिल्विया राफेल का लोहा पूरी दुनिया मानती थी। राफेल अपने काम में इतनी उस्ताद थी कि उन्हें पूरी एजेंसी में इज्जत की नजरों से देखा जाता था। हालांकि, मोसाद से जुड़ने से पहले तेल अवीव के एक स्कूल में अंग्रेजी की टीचर थी। राफेल के बारे में कहा जाता था कि शुरू से ही उनका झुकाव यहूदी और जिओनिज्म की ओर था। वह एक यहूदी पिता और ईसाई मां की संतान थी और उनका जन्म दक्षिण अफ्रीका में हुआ था।
मोसाद स्कूल फॉर स्पेशल ऑपरेशंस के निदेशक मोती कफिर सिल्विया राफेल के बारे में लिखी गई अपनी किताब में बताते हैं कि राफेल पर किताब लिखने की इच्छा उनके पति ने जाहिर की थी। मोती कफिर ने रैम ओरन के साथ लिखी गई इस किताब को ‘सिल्विया राफेल: द लाइफ एंड डेथ ऑफ अ मोसाद स्पाई’ नाम दिया गया था। मोती कफिर और रैम ओरन ने इस किताब में राफेल से जुड़े बहुत सारे किसे इस किताब में बताएं हैं।
मोती कफिर ही वह शख्स थे जिन्होंने सिल्विया राफेल को एक मोसाद एजेंट के रूप में भर्ती किया था। कफिर ने अपनी किताब में बताया कि राफेल का नाम पहली बार तब सामने आया था, जब लीलेहैमर अफेयर मामले में कुछ मोसाद एजेंट्स को जेल भेज दिया था। दरअसल, फिलिस्तीनी आतंकी अली हसन सलामेह को मारने के चक्कर में एक दूसरे शख्स की मौत हो गई थी। इस मामले में 6 मोसाद एजेंट को जेल जाना पड़ा था। जिसके कारण सिल्विया कई सालों तक नार्वे की जेल में बंद रही थी।
दरअसल, सिल्विया राफेल अंडरकवर एजेंट के तौर पर एक फोटोजर्नलिस्ट पेट्रीशिय रॉग्जबर्ग की नकली पहचान के साथ कनाडा और फ्रांस में रही थी। उस वक्त विदेशी स्पाई भी एजेंसी नियुक्त करती थी लेकिन राफेल को कैमरा चलाना आता था, इसलिए उन्हें भेजा गया था। मोती कफिर के मुताबिक अगर लीलेहैमर अफेयर न हुआ होता तो राफेल लंबे समय तक मोसाद के साथ जुड़ी रहती और आसानी से रिटायरमेंट लेती। हालांकि, राफेल का साल 2005 में 67 वर्ष की आयु में कैंसर के चलते निधन हो गया था।