बिहार के बारे में कहा जाता है कि अगर यहां की राजनीति और भौगोलिक पृष्ठभूमि के बारे समझना है तो पहले बाहुबलियों को समझना होगा। सूरजभान सिंह, अनंत सिंह, आनंद मोहन, मुन्ना शुक्ला जैसे बाहुबलियों के बीच अशोक सम्राट भी एक नाम था। जिसने बिहार को अपने आतंक से खौफजदा कर दिया। माना जाता है कि अशोक की तूती बिहार समेत यूपी के गोरखपुर तक बोलती थी।

बिहार का अशोक सम्राट ऐसा नाम जिसने सबसे पहले सूबे की जुर्म की दुनिया में एके-47 जैसे हथियार को अपनाया। बेगूसराय में पैदा हुए अशोक सम्राट ने 90 के दशक में वारदातों में घातक हथियारों का इस्तेमाल शुरू किया था। अशोक सम्राट के पास ऐसे हथियार थे जिन्हें बिहार पुलिस के अफसरों ने उस वक्त देखा तक नहीं था। अपराधियों को काबू करने के लिए उनका इस्तेमाल करना तो दूर की कौड़ी थी।

बिहार में अशोक सम्राट का काम नेताओं और बड़े कारोबारियों को संरक्षण देने का था। वर्चस्व की इस जंग में अशोक का सीधा मुकाबला बाहुबली सूरजभान सिंह से था। कहा जाता था कि अशोक सम्राट ने खौफ फैलाने के लिए आतंकियों के पास से जब्त एके-47 को जुगाड़ से हासिल कर लिया। हालांकि, इसकी कभी पुष्टि नहीं हो पाई। उस दौरान, साल 1993 में बिहार के डीजीपी रहे गुप्तेश्वर बेगूसराय के एसपी थे।

गुप्तेश्वर पांडेय ने ही उस समय अशोक सम्राट गिरोह के पास से एके-47 और सूरजभान सिंह के घर से एके-56 को बरामद किया था। एक इंटरव्यू में गुप्तेश्वर पांडेय बताते हैं कि अशोक सम्राट उस समय बिहार में अपनी अलग सरकार चला रहा था और उसे कानून का कोई खौफ नहीं था। उनके कप्तान रहते हुए 1993-94 में बेगूसराय में 42 मुठभेड़ हुई, जिसमें इतने ही लोग मारे गए।

गुप्तेश्वर पांडेय के मुताबिक, अशोक ने उस दौर में कई लोगों की हत्या एके-47 से की थी। बताया जाता है कि अशोक को यह सब करने का दम अपने राजनीतिक आकाओं के संरक्षण से आता था। बिहार में चुनावों के समय यह बाहुबली राजनीतिक दलों के मुख्य कार्यकर्ता हुआ करते थे। जो अपने खौफ और दहशत से पार्टियों की तरफ वोटों की गिनती बढ़ा देते थे।

अशोक सम्राट का प्रभाव बेगूसराय, मोकामा, वैशाली, लखीसराय जैसे कई इलाको में माना जाता था। लालू यादव की सरकार आने के बाद एक समय लोगों को लगा कि अशोक सम्राट भी सफेदपोश माननीय बनकर अपना रुतबा कायम करेगा लेकिन वह एक मुठभेड़ में ढेर कर दिया गया। बिहार के इस खूंखार बाहुबली का एनकाउंटर जांबाज पुलिस अधिकारी शशिभूषण शर्मा ने किया था।

5 जनवरी, 1995 को पुलिस को सूचना मिली कि अशोक सम्राट किसी रेलवे के ठेके में शामिल होने वाला है। सूचना सही निकली और दोपहर 1 बजे पता चला कि अशोक सम्राट वहां मौजूद है। पुलिस ने दबोचने की कोशिश की तो जवाबी फायरिंग शुरू हो गई और अपराधी गाड़ियों से भाग निकले।

दोपहर में 1 बजे शुरू हुई यह जवाबी मुठभेड़ रुक-रूककर होने लगी और शाम 4 बजे फायरिंग बंद हो गई। पुलिस वालों ने तलाशी अभियान शुरू किया तो अशोक सम्राट के मौत की पुष्टि की गई। उसके पास से एके-47 सहित भारी मात्रा में गोलियां बरामद हुई और आतंक का दूसरा नाम कहे जाने वाले अशोक सम्राट का खौफ वहीं थम गया।