SIP Investment Tips : सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) निवेशकों को अपनी पसंद के म्यूचुअल फंड में एक तय अंतराल पर एक तय राशि का योगदान करने की अनुमति देता है। इसका फायदा यह है कि निवेश के इस मोड में आपका पैसा एक साथ ब्लॉक नहीं होता है और आप छोटी छोटी राशि मंथली बेसिस पर निवेश कर सकते हैं। आमतौर पर म्यूचुअल फंड एसआईपी को कंपाउंडिंग के लिए जाना जाता है, लेकिन कुछ मामले ऐसे भी होते हैं, जहां एसआईपी रिटर्न निगेटिव हो सकता है। यानी आपको कंपाउंडिंग का फायदा मिलने की बजाए नुकसान होने लगता है या कह सकते हैं कंपाउंडिंग निगेटिव होने लगता है।

यह स्थिति चिंताजनक हो सकती है, खासतौर से नए निवेशकों के लिए। ऐसा होने पर यह भी संभव है कि निवेशक घबराकर अपनी यूनिट बेचने लगें या अपना पूरा निवेश निकालने की सोंचे। इस स्थिति में कई बार निवेशक ऐसे निर्णय लेने लगते हैं, जो उनकी लॉन्ग टर्म निवेश स्ट्रैटेजी से बिल्कुल अलग होती है। इस तरह के मामले कोविड 19 के दौरान देखे गए थे, जब बाजार में भारी गिरावट आई थी। लेकिन एक्सपर्ट घबराकर यूनिट सेल करने या गलत निर्णय लेने की बजाए, इन मामलों में ऐसे उपाय पर ध्यान देने की बात करते हैं, जिससे पहले तो आपका रिटर्न स्टेबल हो, फिर लॉन्ग टर्म में तय किया गया लक्ष्य भी पूरा हो सके।

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क्या है कंपाउंडिंग का बिगड़ना

इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मान लिया आपने कंपाउंडिंग का फायदा लेने के लिए म्यूचुअल फंड योजना में एसआईपी शुरू की है। पहलेसाल में आपको 15 फीसदी रिटर्न मिला है, लेकिन दूसरे और तीसरे साल में 12 फीसदी और 8 फीसदी निगेटिव रिटर्न आ गया। ऐसे में आपका ओवरआल रिटर्न बिगड़ जाता है। ऐसा 2 म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेश पर भी हो सकता है। जैसे एक स्कीम में आपको एक साल में 12 फीसदी रिटर्न मिल गया, लेकिन दूसरी स्कीम पर 14 फीसदी निगेटिव रिटर्न मिला। इस मामले में भी उस साल का ओवरआल रिटर्न निगेटिव हो जाता है।

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सबसे पहले तय करें आपना वित्तीय लक्ष्य

जब भी आप लंबी अवधि के लिए निवेश की शुरूआत करने जा रहे हैं, सबसे पहले अपना वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करें। आपकी कितने साल बाद क्या जरूरतें हैं और उसके लिए कितने फंड की जरूरत आ सकती है, इन बातों पर फोकस करें। ऐसे करने पर आपको अपने जरूरत के लिए कितना निवेश करतना है, इसका अनुमान लगाने में आसानी होती है, जो आप फाइनेंशियल एडवाइजर से सलाह लेकर तय कर सकते हैं।

बाजार का ट्रेंड पहचानें

अगर इक्विटी की बात करें तो स्टॉक की कीमत में उतार-चढ़ाव बाजार के सामान्य ट्रेंड के कारण होते हैं। जब आप ट्रेंड के सही पक्ष में होते हैं, तो आपके लिए कंपाउंडिंग काम करती है, चाहे वह अप मार्केट हो या डाउन मार्केट। इसलिए, पहला कदम बाजार के सही ट्रेंड का आकलन करना है, आपको पहचानना होगा कि बाजार में बुल ट्रेंड में या बियर ट्रेंड में। फिर उसी ट्रेंड के साथ निवेश करें। सफल निवेश के लिए डाइवर्सिटी भी बहुत जरूरी है। इसी वजह से म्यूचुअल फंड में निवेश करते समय हमेशा पोर्टफोलियो को डाइवर्सिफाइड करने पर जोर देना चाहिए।

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निवेश के पहले रिसर्च करें

अगर आप किसी सेक्टर या निवेश के विकल्‍प में सिर्फ मिलने वाले रिटर्न को देखकर पैसा लगाते हैं तो यह सही तरीका नहीं है। कुछ समय तक हाई रिटर्न देने वाला विकल्प अगले कुछ दिनों में निगेटिव रिटर्न भी दे सकता है। इसलिए पहले आप रिचर्स करें कि जिस फंड में पैसे लगा रहे हें, उसके पोर्टफोलियो में किन कंपनियों के शेयर है। उन कंपनियों में हाई ग्रोथ के साथ लंबी अवधि तक मार्केट में आगे बने रहने की क्षमता है या नहीं। उसके बाद उस फंड के बारे में मसलन उसके पिछले प्रदर्शन, आउटलुक और एक्‍सपेंस रेश्‍यो की तुलना करनी चाहिए. निवेश के पहले फाइनेंशियल एडवाइजर से भी सलाह लें।

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बाजार में समय का न करें इंतजार

कई बार निवेशक बाजार की टाइमिंग तय करने में गलती करते हैं। निवेश शुरू करने के लिए बाजार सस्ता होने का इंतजार नहीं करना चाहिए। बाजार में हर समय निवेश के मौके हैं। कई निवेशक बाजार में उथल पुथल को देखकर डर जाते हैं और लक्ष्‍य से पहले ही पैसे निकाल लेते हैं। इसका असर यह होता है कि जब बाजार नई ऊंचाई बनाता है तो निवेशकों को इसका फायदा नहीं मिलता है। अगर लंबी अवधि तक धैर्य नहीं रख सकते तो एसआईपी के बारे में विचार नहीं करना चाहिए।

निवेश का समय समय पर आकलन

अगर आप लंबी अवधि के लिए निवेश कर रहे हैं तो आपको समय-समय पर अपने पोर्टफोलियो में मौजूद म्यूचुअल फंड के रिटर्न की जांच करते रहना चाहिए। अगर म्यूचुअल फंड लगातार निगेटिव रिटर्न दे रहा है या बाजार के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर रहा है, तो सभी विचारों को ध्यान में रखते हुए इससे बाहर निकलना बेहतर है।

(Source: Financial Websites Blog)