अपने भारी वजन के चलते आमों की मलिका के रूप में मशहूर ‘नूरजहां’ की पैदावार अप्र्रैल-मई में भीषण गर्मी पड़ने के कारण काफी कम रह गई है। इससे कई शौकीनों को आम की इस खास किस्म के दुर्लभ जायके से महरूम होना पड़ सकता है। अफगानिस्तानी मूल की इस आम प्रजाति के पेड़ मध्यप्रदेश के अलीराजपुर जिले के कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में ही पाए जाते हैं। यहां से करीब 250 किलोमीटर दूर कट्ठीवाड़ा में इस प्रजाति की खेती के विशेषज्ञ इशाक मंसूरी ने गुरुवार को बताया कि अप्रैल-मई में भीषण गर्मी के कारण इस बार नूरजहां की फसल को खासा नुकसान हुआ। हर साल आमतौर पर इसके एक पेड़ पर करीब 400 फल लगते हैं। लेकिन इस बार इसके पेड़ पर केवल 75 के आसपास फल लगे।
मंसूरी ने बताया कि अप्रैल-मई के दौरान भीषण गर्मी से भूमिगत जल स्तर गिरने से नूरजहां के पेड़ों की हरी-भरी शाखाएं सूख गर्इं और उन पर नहीं के बराबर बौर आए। उन्होंने बताया कि इस बार नूरजहां के फलों का औसत वजन केवल दो किलोग्राम के आसपास रहा, जो आमतौर पर 3.5 से 3.75 किलोग्र्राम के बीच रहता है। उन्होंने बताया कि कट्ठीवाड़ा क्षेत्र में नूरजहां के केवल तीन पेड़ बचे हैं, जो दशकों पुराने हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते तापमान में असामान्य उछाल और उचित देखभाल के अभाव के कारण इनकी उत्पादकता लगातार गिर रही है। कट्ठीवाड़ा क्षेत्र के अलावा दूसरे स्थानों पर नूरजहां के पेड़ लगाकर इसके फलों की पैदावार हासिल करने की कई कोशिशें की गर्इं। लेकिन ये कोशिशें अब तक कामयाब नहीं हो सकी हैं।
मंसूरी ने बताया कि नूरजहां के पेड़ केवल सात-आठ फुट की ऊंचाई तक बढ़ते हैं, जो आम की अन्य प्रजातियों के वृक्षों के कद के मुकाबले काफी कम है। नूरजहां के पेड़ों पर जब आम आने शुरू होते हैं, तो फलों के भारी वजन से पेड़ झुकने लगते हैं। आखिर में स्थिति यह हो जाती है कि पेड़ों पर कपडेÞ की थैलियां बांधकर आमों को सहारा देना पड़ता है, ताकि वे समय से पहले ही डाल से गिर न जाएं। नूरजहां के फलों की बेहद सीमित संख्या के कारण शौकीन लोग तब ही इनकी ‘बुकिंग’ कर लेते हैं, जब ये डाल पर लटके होते हैं। मांग बढ़ने पर इस आम प्रजाति के एक फल की कीमत 500 रुपए तक भी पहुंच जाती है। नूरजहां के पेड़ों पर जनवरी-फरवरी में बौर आने शुरू होते हैं और इसके फल मई-जून में पककर तैयार होते हैं।