अगले सप्ताह देश का आम बजट पेश होने वाला है। कोरोना काल को देखते हुए इस बार का बजट काफी अहम है। इस बार बजट में सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखने पर जोर दे सकती है।
क्या होता है राजकोषीय घाटा: सरकार की कुल कमाई और खर्च के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। वित्त मंत्रालय प्रत्येक वर्ष बजट में राजकोषीय घाटे का लक्ष्य तय करता है। वित्त वर्ष 2020-21 के बजट में राजकोषीय घाटा 7.96 लाख करोड़ यानी जीडीपी का 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा गया था।
राजकोषीय घाटा 2021-22 में 6.2 प्रतिशत जबकि इस साल 7 प्रतिशत के करीब रहने का अनुमान है। बढ़ते राजकोषीय घाटे का असर वही होगा जो आपकी कमाई के मुकाबले खर्च बढ़ने पर होता है, यानी कर्ज लेना पड़ता है। सरकार बाजार से कर्ज लेकर इस घाटे को कम करती है।
बजट में क्या होगा: ब्रोकरेज फर्म बैंक ऑफ अमेरिका सिक्योरिटीज इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक आम बजट में राजकोषीय घाटे की चिंताओं की बजाय वृद्धि तथा संरचनात्मक सुधारों पर अधिक जोर होने की संभावना है।
रिपोर्ट के मुताबिक बजट में पूंजीगत व्यय को बढ़ाने, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी डालने, सरकारी एकाधिकार को तोड़ने के लिए सरकारी परिसंपत्तियों की बिक्री को तेज करने, रियल एस्टेट को राहत दिए जाने, निम्न आय वर्ग के लिए कर राहत देने पर जोर हो सकता है। इसके अलावा विभिन्न बैंकों के फंसे हुए कर्ज को एक जगह मिलाकर एक ‘बैड बैंक’ बनाने की घोषणा की जा सकती है।
इंडिया रेटिंग्स के अनुसार बजट में राजकोषीय घाटे को काबू में रखने पर बहुत ज्यादा जोर के बजाए अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के उपायों पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। सरकार कोरोना वायरस महमारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को संबल देने के लिये उदार राजकोषीय नीति को अपनाया और आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत कई नीतिगत उपायों की घोषणा की।
रेटिंग एजेंसी के अनुसार जो आर्थिक पैकेज दिये गये, यह 3.5 लाख करोड़ रुपये या जीडीपी का 1.8 प्रतिशत बैठता है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इस पैकेज के बिना भी 2020-21 में 60,000 करोड़ रुपये राजस्व में कमी का अनुमान है।