सिंगापुर, भारत के साथ दो दशक पुरानी कर संधि को संशोधित करने के लिए और समय चाह रहा है। उसका कहना है कि उसके निवेशकों को स्रोत आधारित कराधान की ओर स्थानांरित होने में थोड़े और समय की जरूरत है। हालांकि भारत ने संधि में संशोधन को टाले जाने की बात को खारिज कर दिया। इससे कर देनदारी से बचने के लिए निवेशकों द्वारा सिंगापुर के इस्तेमाल पर रोक लगेगी। सिंगापुर देश में एफडीआई का प्रमुख स्रोत है। भारत और मॉरीशस के बीच इस साल मई में कर संधि में संशोधन से एक बड़ी खामी को दूर करने में मदद मिली। इसके तहत निवेशकों को भारत में पूंजी लाभ पर शुल्क देनदारी से बचने की अनुमति थी। इससे सिंगापुर के साथ भी इसी प्रकार के संशोधन की बात उठी।
हाल में राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक में सिंगापुर ने कर संधि में संशोधन 31 मार्च के आगे बढ़ाए जाने की वकालत की है। उसका कहना है कि उसके निवेशक और समय चाहते हैं। भारत अप्रैल 2017 से पहले संधि का संशोधन करने को लेकर गंभीर है। उसी समय से मॉरीशस के साथ संशोधित कर समझौता प्रभाव में आएगा। एक अधिकारी ने कहा, ‘सिंगापुर चाहता है कि संशोधन देरी से किया जाए जो संभव नहीं है।’ भारत और सिंगापुर ने 27 मई 1994 को दोहरा कराधान बचाव संधि (डीटीएए) की थी। इस द्विपक्षीय कर संधि से सिंगापुर को किसी भी देश से आने वाले निवेश पर कर लगाने की अनुमति है।
इस साल की शुरुआत में भारत ने मॉरीशस के साथ 34 साल पुराने कर संधि में संशोधन किया जिसमें स्रोत आधारित कराधान का प्रावधान है। इसका मतलब है कि पूंजी लाभ पर कर वहां लगाया जाएगा जहां यह उत्पन्न हुआ है। इस कदम का मकसद स्थानीय निवेशकों के बीच भेद-भाव को बंद करना है जिन्हें अपने अल्पकालीन लाभ का 15 प्रतिशत सरकार को देना होता है। अधिकारी ने कहा, ‘सिंगापुर के साथ बातचीत हो रही है। हम जल्दी ही अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचेंगे।’ भारत ने 2015-16 में 40 अरब डालर का एफडीआई प्राप्त किया जिसमें मॉरीशस और सिंगापुर का योगदान 22 अरब डॉलर है।