भले ही देश का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक सबसे उच्च 430 अरब डॉलर का स्तर छूने को है लेकिन दो साल के दौरान विदेशी कर्ज में 51000 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की है। जून 2017 में विदेशी कर्ज 485 अरब डॉलर था जो साल 2019 में बढ़कर 557 अरब डॉलर हो गया।
विदेशी मुद्रा भंडार में जमा राशि और कर्ज के बीच ये अंतर तेल की कीमतों में बढ़ोतरी जैसे बाहरी कारकों से देश की अर्थव्यवस्था के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है। दूसरी तरफ देश में घरेलू वित्तीय बाजार पिछले साल से नकदी के संकट का सामना कर रहा है। कंपनियों के लिए बैंकों और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों से फंड हासिल करने में भी मुश्किलें पेश आ रही हैं।
विदेशी कर्ज में पिछले 5 साल की तुलना में पिछले एक साल में सबसे अधिक तेजी से बढ़ोतरी हुई है। साल 2014 की तुलना में विदेशी कर्ज 11.8 फीसदी बढ़ गया है। विदेश कर्ज के पिछले साल के 8.6 फीसदी की तुलना में साल 2017 से 2018 के भारत के विदेशी कर्ज की कुल विकास दर जून 2014 से जून 2018 के बीच 3.16 फीसदी रही।
वहीं, लंबी अवधि के बकाया कर्ज की राशि में पिछले एक साल में 8 फीसदी की वृद्धि हुई है। यह पिछले एक साल में 414 अरब डॉलर से बढ़कर 447 अरब डॉलर पहुंच गया है। वहीं, छोटी अवधि के बकाया कर्ज में 11.1 फीसदी की तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह पिछले एक साल में 98.7 अरब डॉलर से 109.7 अरब डॉलर पहुंच चुका है।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि आईएलएफ संकट और इसके पड़ने वाले प्रभावों को देखते हुए बैंकों की तरफ से कर्ज देने में कमी के कारण विदेश कर्ज की राशि में बढ़ोतरी हुई है। एक अग्रणी ग्लोबल फाइनेंसियल सर्विसेज फर्म के अर्थशास्त्री का कहना है कि भारत की वित्तीय प्रणाली क्षमता कम हुई है और यह देश की वित्तीय क्षमता में भी कमी है। इस वजह से लोग विदेशों से कर्ज लेने पर मजबूर हुए हैं।
यह अच्छा है कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने विदेशों से कर्ज लेने के नियम आसान कर दिये हैं। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2009 में विदेशी कर्ज 224 अरब डॉलर था जो अगले बाच साल में तेजी से बढ़कर 446 अरब डॉलर पहुंच गया। साल 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान देश का विदेशी मुद्रा भंडार 310 अरब डॉलर था। वहीं विदेश कर्ज की 224 अरब डॉलर था।