अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने मौद्रिक उपायों के जरिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य हासिल करने की रिजर्व बैंक की क्षमता पर सवाल उठाया है। आईएमएफ के एक दस्तावेज में कहा गया है कि भारत में औपचारिक वित्तीय क्षेत्र का आकार काफी छोटा है और संभवत: इसकी वजह से सकल मांग पर ब्याज दरों में बदलाव का प्रभावी असर नहीं दिखाई दे। आईएमएफ का दस्तावेज इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि रिजर्व बैंक ने हाल में मुद्रास्फीति लक्ष्य व्यवस्था का क्रियान्वयन किया है। इसके तहत उसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित खुदरा मुद्रास्फीति के सार्वजनिक रूप से घोषित लक्ष्य को पाना है। नई व्यवस्था के तहत रिजर्व बैंक को अगले पांच साल में खुदरा मुद्रास्फीति का चार प्रतिशत (दो प्रतिशत ऊपर या नीचे) पाना है।
चार अक्तूबर को अगली मौद्रिक समीक्षा में ब्याज दरों पर निर्णय केंद्रीय बैंक के गवर्नर के बजाय छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) करेगी। आईएमएफ के दस्तावेज ‘विकासशील देशों में (मौद्रिक नीति प्रेषण) भारत से प्रमाण’ में कहा गया है, ‘रिजर्व बैंक नियंत्रित नीतिगत ‘उपकरणों’ तथा भारतीय अर्थव्यवस्था की कुल मांग के बीच प्रभावी और विश्वसनीय संपर्क के अभाव में जनता संभवत: यह विश्वास नहीं करेगी कि रिजर्व बैंक घोषित मद्रास्फीति के लक्ष्य को हासिल कर पाएगा। ऐसे में यह लक्ष्य पाना और मुश्किल हो जाएगा।’
आईएमएफ ने कहा कि कम आय वाले देशों में मौद्रिक नीति पारेषण की दक्षता के सावधानी से अध्ययन से पाया गया है कि कई बार मौद्रिक नीति का प्रभाव प्रतिकूल, कमजोर या अविश्वनीय रहता है। प्राची मिश्रा, पीटर मॉन्टियल तथा राजेश्वरी सेनगुप्ता द्वारा लिखे गए दस्तावेज में कहा, ‘वहीं दूसरी ओर भारत में छोटे आकार का औपचारिक वित्तीय क्षेत्र कुल मांग पर बैंकों की ब्याज दर के प्रभाव को सीमित करेगा।’