एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए रिजर्व बैंक ने मंगलवार को नीतिगत (रेपो) ब्याज दर में 0.25 फीसद कटौती कर दी। देश में निवेश व आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए यह कदम उठाया गया है। इस साल इस तीसरी कटौती के बाद रेपो दर 7.25 फीसद पर आ गई है। पहले की दोनों कटौतियों का बैंकों ने कर्ज लेने वाले अपने ग्राहकों को कोई लाभ नहीं दिया। पर इस बार रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने उम्मीद जताई है कि बैंक इसका लाभ कर्ज लेने वालों को जरूर पहुंचाएंगे।
रिजर्व बैंक ने इसके साथ ही निकट भविष्य में रेपो दर में और कटौती नहीं किए जाने का संकेत दिया है। उसका कहना है कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में लगतार तेजी और भू राजनीतिक जोखिमों के साथ बारिश कम होने से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने का खतरा है।
उद्योग जगत को उम्मीद थी कि रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा करते वक्दत सीआरआर (नकद आरक्षित अनुपात) में भी कटौती करेगा। पर ऐसा हुआ नहीं। सीआरआर वह तुलनात्मक आंकड़ा है जो बैंकों को अपनी जमा राशियों के उस फीसद के बराबर रकम रिजर्व बैंक के पास रखना अनिवार्य बनाता है। इसमें कटौती होने से बैंकों के पास मुद्रा की उपलब्धता बढ़ जाती है और इससे वे ब्याज दर में कटौती कर पाते हैं।
संभवत: मुद्रास्फीति को लेकर रिजर्व बैंक के अनुमान की वजह से ही शेयर बाजार को झटका लगा। नतीजतन नीतिगत दर में कटौती की घोषणा के बाद भी प्रमुख शेयर सूचकांकों में तेज गिरावट दर्ज की गई। रिजर्व बैंक ने जनवरी 2016 तक मुद्रास्फीति का अनुमान बढ़ा कर 6 फीसद कर दिया है। मुद्रास्फीति बढ़ने की आशंका के बावजूद रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने वित्त मंत्री अरुण जेटली की मांग पर गौर करते हुए वर्ष की शुरुआत में ही दर में अब तक तीन बार कटौती का कदम उठाया है। जनवरी से अब तक रेपो दर में कुल .75 फीसद कटौती की जा चुकी है।
ज्यादातर बैंकरों का मानना है कि रेपो दर में मंगलवार की कटौती से रिजर्व बैंक ने कर्ज और जमा दर को कम करने की संभावना बढ़ा दी है। इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र का इलाहाबाद बैंक पहला बैंक बन गया है जिसने कर्ज पर ब्याज दर में 0.3 फीसद कटौती की घोषणा कर दी है। रेपो दर अब 7.25 फीसद होगी। इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर 6.25 फीसद, स्थाई सीमांत सुविधा और बैंक दर 8.25 फीसद पर आ गई। हालांकि, बैंकों के सीआरआर को चार फीसद और एसएलआर को 21.5 फीसद पर स्थिर रखा गया है।
रिजर्व बैंक ने वैश्विक कारकों और सामान्य से कम मानसून के संभावित असर के मद्देनजर चालू वित्त वर्ष की आर्थिक वृद्धि का अनुमान अप्रैल के 7.8 फीसद से घटाकर 7.6 फीसद कर दिया है। मुद्रास्फीति को लेकर रिजर्व बैंक की चिंता लगातार बनी हुई है। बैंक का मानना है कि मुद्रास्फीति अगस्त तक नीचे बनी रहेगी पर उसके बाद जनवरी 2016 तक यह बढ़कर 6 फीसद तक हो जाएगी। रिजर्व बैंक ने सरकार से इस स्थिति से निपटने के लिए आकस्मिक आपात योजना तैयार रखने को कहा है ताकि कमजोर मानसून की वजह से कम खाद्यान्न उत्पादन के प्रभाव से बेहतर ढंग से निपटा जा सके।
रिजर्व बैंक के लिए दूसरी चिंता कच्चे तेल के बढ़ते दाम की है। अप्रैल की मौद्रिक समीक्षा के बाद से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम 9 फीसद बढ़ चुके हैं।
मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमणियन का कहना था कि रिजर्व बैंक के कदम अर्थव्यवस्था के रुझानों के अनुरूप हैं। मजबूती के साथ घटती मुद्रास्फीति, नियंत्रण के दायरे में चालू खाते का घाटा और राजकोषीय अनुशासन की दिशा में उठाए जा रहे कदम इसमें सहायक हैं।
मौद्रिक नीति घोषणा के तुरंत बाद स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा कि ब्याज दरों को लेकर गिरावट का रुख है और दर कटौती को आगे पहुंचाने की मंशा बनी हुई है। बैंक भी दरों में कटौती पर गौर करेंगे। जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा के कार्यवाहक सीईओ और प्रबंध निदेशक राजन धवन ने कहा कि अगले दो-तीन हफ्ते में दर में कटौती की उम्मीद है।
एसबीआइ व तीन और सरकारी बैंकों ने कर्ज किया सस्ता
सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) सहित कई अन्य बैंकों ने ऋण पर ब्याज दर में 0.3 फीसद की कटौती की है। एसबीआइ ने अपनी आधार दर 9.85 फीसद से 9.70 फीसद कर दी है। नई दर 8 जून से प्रभावी होगी। इलाहाबाद बैंक ने अपनी आधार दर में 0.30 फीसद की कटौती की है। देना बैंक व पंजाब एंड सिंध बैंक ने अपनी आधार दर चौथाई-चौथाई फीसद घटाई है।
क्या है रेपो दर
रेपो दर वह ब्याज दर है जिस पर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को नकदी की फौरी जरूरत के लिए उधार देता है। मसलन 24 घंटे की अवधि के वास्ते लिए जाने वाले कर्ज पर वसूल की जाने वाली दर।
ऐसे होगा आपको फायदा
रेपो दर में कमी से बैंकों के धन की लागत कम होगी। उम्मीद है कि इससे वे आवास, वाहन की खरीद और उद्योग धंधे चलाने के लिए दिया जाने वाला कर्ज सस्ता कर सकेंगे।
कटौती पर विराम
रिजर्व बैंक ने निकट भविष्य में रेपो दर में और कटौती नहीं किए जाने का संकेत दिया है। उसका कहना है कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में लगातार तेजी और भू-राजनीतिक जोखिमों के साथ बारिश कम होने से मुद्रास्फीति का दबाव बढ़ने की आशंका है।