अगर आप शेयर बाजार में पैसे लगाने का मन बना रहे हैं और यह नहीं समझ पा रहे कि बाजार काम कैसे करता है। कौन- से ऐसे फैक्टर्स हैं जिनकी मदद से यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि मार्केट किस तरफ जाएगा और आने वाले समय में बाजार की क्या दशा होगी। आज से एक सदी पहले बनी The Dow Theory आपकी काफी मदद कर सकती है।

The Dow Theory को शेयर बाजार में टेक्निकल एनालिसिस की आधारशिला कहा जाता है। इसे चार्ल्स डॉव ने लिखा था, जिन्होंने आगे चलकर अपने दो साथियों के मिलकर अमेरिका के प्रचलित अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ की स्थापना की थी।

क्या कहती है The Dow Theory?: डॉव का मानना है कि शेयर बाजार अर्थव्यवस्था की परिस्थितियों का सूचक होता है। इन परिस्थितियों का आकलन करके कोई भी बड़े स्तर पर बाजार की दिशा का सटीक दिशा का आकलन कर सकता है। साथ ही इस थ्योरी में बताया गया है कि शेयर बाजार में एक ही समय पर सभी निवेशकों का व्यवहार एक जैसा ही होता है। उदाहरण के लिए जब बाजार गिरने लगता है तो सभी निवेशक डर जाते हैं और जल्दबाजी में बिकवाली करते हैं। वहीं, जा बाजार चलने लगता है तो निवेशक महंगे दामों पर भी खरीदने को तैयार हो जाते हैं। इसमें थ्योरी में सपोर्ट और रेजिस्टेंस के बारे में भी बताया गया है।

  1. बाजार हर चीज को डिस्काउंट कर लेता है: डॉव थ्योरी में कहा गया है कि बाजार हर चीज को डिस्काउंट करता है। कंपनी की आने वाली आय हो, बाजार में प्रतिस्पर्धा का बढ़ना हो या फिर कंपनी को होने वाली आकस्मिक आय, किसी भी कंपनी के शेयर में पहले से दिखने लग जाती है। ठीक इसी प्रकार शेयर बाजार में भी किसी बड़े इवेंट का असर पहले ही बाजार में बढ़त या गिरावट के रूप दिखने लग जाता है।
  2. बाजार में तीन ट्रेंड्स होते हैं: बाजार मुख्यतः तीन ट्रेंड्स पर चलता है। पहला होता है प्राइमरी ट्रेंड, जो बाजार में कुछ वर्षों तक चलता है। दूसरा होता है सेकेंडरी ट्रेंड, जो बाजार में तीन हफ्तों और महीनों तक चल सकता है। तीसरा होता है फाइनल ट्रेंड, जो तीन हफ्तों कम और कई बार कुछ घंटों तक रह सकता है।
  3. शेयर बाजार के तीन चरण हैं: डॉव थ्योरी में बताया गया है कि शेयर मार्केट के तीन चरण होते हैं तेजी के बाजार में – संचय चरण, सार्वजनिक भागीदारी (जहां बड़ा रिटर्न मिलता है) चरण और अतिरिक्त चरण होता है। वहीं, मंदी के बाजार में – वितरण चरण, सार्वजनिक भागीदारी चरण और बड़ी गिरावट (Panic Selling) चरण होता है।
  4. सभी इंडेक्स एक दूसरे की स्थिति बताती हैं: इसमें बताया गया है कि बाजार में इंडेक्स एक दूसरे की स्थिति की तरफ इशारा करते हैं। उदाहरण के लिए निफ्टी आईटी अगर तेजी का इशारा करता है तो ट्रेडर्स को एक बार निफ्टी 50 जैसे इंडेक्स को भी चेक कर लेना चाहिए। अगर वह अभी भी सपाट या मंदी की तरफ इशारा कर रहा है तो इसे ट्रेंड में बदलाव नहीं मानना चाहिए।
  5. वॉल्यूम ट्रेंड की पुष्टि करते हैं: डॉव थ्योरी के अनुसार, किसी भी ट्रेंड को पकड़ने से पहले शेयर में आने वाले वॉल्यूम को जरूर देखना चाहिए। अगर किसी शेयर की कीमत बढ़ रही है लेकिन वॉल्यूम में इजाफा नहीं हो रहा है तो इसका मतलब है कि ट्रेंड कमजोर है और कभी भी दूसरी दिशा में मुड़ सकता है।
  6. ट्रेंड जब तक जारी रहता है तब तक रिवर्सल न हो: डॉव का मानना था कि ट्रेंड के बीच में रिवर्सल का पता लगाना बेहद मुश्किल कार्य है। ट्रेडर्स इसे सेकेंडरी फेस से जोड़ लेते है लेकिन जब तक आप की अपेक्षा और परिणाम में बहुत ज्यादा अंतर ना आने लगे, तब तक रिवर्सल नहीं मानना चाहिए।