Debt Fund vs Equity Fund : Which is good for you: डेट फंड में पैसे लगाने वाले बहुत से इन्वेस्टर अपने निवेश से खुश नहीं हैं. दरअसल लंबी अवधि के डेट फंड का पिछले 3 साल का औसत सालाना रिटर्न महज 5 फीसदी के आसपास रहा है. लॉन्ग ड्यूरेशन डेट फंड के रिटर्न की इस तस्वीर से कई निवेशक निराश हैं. कॉरपोरेट बॉन्ड फंड्स ने भी पिछले 3 साल के दौरान सालाना 6 फीसदी के आसपास ही रिटर्न दिया है. महंगाई के लिए एडजस्ट करने के बाद इनकी कमाई और भी घट जाती है. ऐसे में कई निवेशकों के मन में सवाल उठ सकता है कि उन्हें अब क्या करना चाहिए? क्या डेट फंड्स में निवेश करने वालों को अब वहां से पैसे निकालकर बेहतर रिटर्न के लिए इक्विटी फंड्स का रुख करना चाहिए? अगर हां, तो इसका सही तरीका क्या होगा? इन सवालों की चर्चा आगे करेंगे, लेकिन सबसे पहले डेट फंड और इक्विटी फंड के मतलब और अंतर को समझ लेते हैं. 

डेट और इक्विटी फंड में क्या है फर्क

डेट फंड और इक्विटी फंड, दोनों भले ही म्यूचुअल फंड हों, लेकिन दोनों का इनवेस्टमेंट पोर्टफोलियो,  निवेश का लक्ष्य और  नफा-नुकसान काफी अलग होता है. डेट फंड ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम है, जिसके पोर्टफोलियो में मुख्य तौर पर कॉरपोरेट बॉन्ड, गवर्नमेंट बॉन्ड और मनी मार्केट इंस्ट्रूमेंट जैसे फिक्स्ड इनकम एसेट्स शामिल होते हैं. डेट फंड्स को कई बार बॉन्ड फंड या इनकम फंड भी कहते हैं. वहीं, इक्विटी फंड का मतलब है ऐसी म्यूचुअल फंड स्कीम, जिनका कम से कम 65% हिस्सा इक्विटी और उससे जुड़े इंस्ट्रूमेंट्स में लगाया जाता है. 

डेट फंड में निवेश का मुख्य मकसद पूंजी को सुरक्षित रखते हुए मॉडरेट रिटर्न हासिल करना होता है. साथ ही फिक्स्ड इनकम एसेट्स में निवेश के कारण इससे आपके पोर्टफोलियो को स्थिरता और मजबूती भी मिलती है. वहीं इक्विटी फंड में नियमित निवेश आपको लंबी अवधि के दौरान काफी बेहतर रिटर्न दे सकता है. लेकिन इक्विटी यानी शेयरों में निवेश के कारण इसमें मार्केट से जुड़ा रिस्क भी अधिक रहता है. 

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डेट और इक्विटी फंड में निवेश का कैसे करें फैसला 

डेट फंड उन लोगों के लिए बेहतर ऑप्शन हैं, जो अपनी पूंजी पर ज्यादा रिस्क नहीं उठाना चाहते. जिन लोगों का इनवेस्टमेंट होराइजन लंबा नहीं है, उनके लिए भी डेट फंड बेहतर रहते हैं. अगर आपको आने वाले एक साल के भीतर पैसे निकालने की जरूरत पड़ने वाली है, तो आपके लिए लिक्विड फंड में निवेश करना बेहतर रहेगा. लेकिन अगर आपका इनवेस्टमेंट होराइज़न एक साल से 5 साल के बीच है, तो आप अपनी पूंजी को कई शॉर्ट ड्यूरेशन फंड्स में बांटकर निवेश कर सकते हैं. वहीं, अगर आप 5 साल या उससे ज्यादा समय के लिए निवेश करने को तैयार हैं, तो इक्विटी फंड आपके लिए सही ऑप्शन साबित हो सकते हैं. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने सारे पैसे सिर्फ इक्विटी में ही लगा दें. आपको अपने पोर्टफोलियो में इक्विटी को कितनी जगह देनी है और डेट को कितनी इसका फैसला काफी ध्यान से करना चाहिए.

डेट फंड से पैसे निकालकर इक्विटी में निवेश कितना सही? 

डेट फंड से सारे पैसे निकालकर उन्हें पूरा का पूरा इक्विटी फंड में लगाना सही नहीं है. जैसा हमने ऊपर बताया, दोनों फंड्स की कैटेगरी और निवेश का मकसद अलग-अलग होता है. इसलिए एक अच्छे पोर्टफोलियो में दोनों ही तरह के एसेट्स को संतुलित जगह दी जानी चाहिए. अगर आपके मौजूदा पोर्टफोलियो में सिर्फ फिक्स्ड इनकम एसेट्स ही भरे हुए हैं और बेहतर रिटर्न के लिए थोड़ा-बहुत रिस्क लेने को तैयार हैं, तो डेट फंड का कुछ हिस्सा निकालकर इक्विटी फंड में निवेश कर सकते हैं. इससे आपका पोर्टफोलियो डायवर्सिफाइड हो जाएगा और रिस्क-रिटर्न का बैलेंस भी बना रहेगा. इक्विटी फंड में सारे पैसे एक साथ लगाने की बजाय, अगर आप सिस्टमैटिक इनवेस्टमेंट प्लान (SIP) के जरिए किस्तों में निवेश करेंगे तो एवरेजिंग का फायदा मिलेगा और आपके निवेश पर बाजार की उथल-पुथल का असर कम पड़ेगा.

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डेट और इक्विटी फंड में कैसे बांटें अपना पोर्टफोलियो? 

अगर आप इस बारे में फैसला नहीं कर पा रहे कि अपने पोर्टफोलियो में डेट फंड को कितनी जगह दें और इक्विटी फंड को कितनी, तो सरकार समर्थित नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) के ऑटो चॉइस वाले फॉर्मूले को भी फॉलो कर सकते हैं. इस फॉर्मूले में निवेशक की उम्र के हिसाब से तय किया जाता है कि उसके पोर्टफोलियो में कितना हिस्सा इक्विटी का होना चाहिए और कितने पैसे डेट फंड में लगाने चाहिए. मिसाल के तौर पर अगर आपकी उम्र 35 साल या उससे कम है और आप ‘एग्रेसिव लाइफ साइकल फंड’ वाले विकल्प को अपनाते हैं, तो इस फॉर्मूले के हिसाब से आपके पोर्टफोलियो में इक्विटी फंड को 75 फीसदी, कॉरपोरेट बॉन्ड फंड को 10 फीसदी और गवर्नमेंट बॉन्ड फंड को 15 फीसदी जगह दी जा सकती है. 

अगर आपने पहले कभी इक्विटी फंड में निवेश नहीं किया, तो आप एग्रेसिव हाइब्रिड फंड से भी शुरुआत कर सकते हैं. एग्रेसिव हाइब्रिड फंड ऐसे म्यूचुअल फंड को कहते हैं, जो इक्विटी और डेट/बॉन्ड, दोनों में पैसे लगाते हैं. लेकिन इक्विटी में उनका निवेश 65 से 75 फीसदी तक रहता है, जिससे ऊंचा रिटर्न हासिल करने में मदद मिलती है. एग्रेसिव हाइब्रिड फंड का बाकी 25 से 35 फीसदी तक कॉर्पस बॉन्ड या अन्य फिक्स्ड इनकम वाले एसेट्स में लगाया जाता है, जिससे फंड को थोड़ी स्थिरता मिल जाती है.