भारतीय रिजर्व बैंक के कॉरपोरेट रिण के प्रस्तावित सख्त नियमों की वजह से बैंकों का झुकाव उपभोक्ता ऋणों की ओर बढ़ेगा। भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य ने यह बात कही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि खुदरा खंड में कोई बुलबुला नहीं फूटने वाला है। रिजर्व बैंक ने पिछले महीने बड़े कॉरपोरेट को ऋण के लिए दिशानिर्देशों का मसौदा जारी किया है। इसके तहत बैंकों से कहा गया है कि यदि ऋण की राशि तय सीमा से अधिक होती है तो वे इसके लिए अतिरिक्त प्रावधान करें। भट्टाचार्य ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘ताजा नियमों से बड़ी कंपनियों को कर्ज देना बैंकों के साथ साथ कर्ज लेने वाली कंपनियों दोनों के लिए अधिक महंगा बैठेगा।’ उन्होंने कहा कि ऐसे में रिजर्व बैंक खुद हमें ऐसे मॉडल की ओर धकेल रहा है जो खुदरा अधिक है। हालांकि, उन्होंने इसके साथ जोड़ा कि एसबीआई पर किसी तरह का दबाव नहीं है, पूरी प्रणाली के बारे में रिजर्व बैंक जानता होगा।
रिजर्व बैंक ने गत 25 अगस्त को नए दिशानिर्देश जारी करते हुए बड़ी कंपनियों-संबद्ध पक्षों को ऋण की सीमा तय की है। प्रणाली में जोखिम को कम करने के लिए रिजर्व बैंक ने प्रस्ताव किया है कि किसी भी उद्योग समूह को बैंक का रिण उसकी पूंजी के 25 प्रतिशत तक हो सकता है। पहले यह सीमा 55 प्रतिशत की थी। भट्टाचार्य ने कहा कि एसबीआई का खुदरा पोर्टफोलियो काफी अच्छे तरीके से चल रहा है। पोर्टफोलियो में दबाव बढ़ने का कोई संकेत नहीं है। पिछले साल के दौरान एसबीआई के खुदरा खंड की वृद्धि 20 प्रतिशत रही। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में भी यह इतनी ही रही है।
एसबीआई की चेयरपर्सन ने कहा, ‘आज हमारी निगरानी प्रणाली अधिक बेहतर है। हम जो भी कर रहे हैं उसकी तिमाही-छमाही आधार पर निगरानी होती है। ऐसे में यदि दबाव शुरू होता है तो हम उसे काफी जल्दी देख सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘अभी तक हमें ऐसा नहीं दिखा है। मुझे नहीं पता कि अन्य बैंकों में क्या स्थिति है।’ भट्टाचार्य ने हाल में कहा था कि खुदरा ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद का 10 प्रतिशत से भी कम है तो उभरते बाजारों में निचले स्तर पर है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इस बात पर चिंता जताई थी कि विशेषरूप से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक परियोजना ऋण कम कर रहे हैं और आक्रामत तरीके से खुदरा रिण को आगे बढ़ा रहे हैं।