केंद्र सरकार ने घरेलू स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग के लिए तीन स्कीमों का ऐलान किया है, जिनमें मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग को प्रमुख स्थान दिया गया है। सरकार ने 50,000 करोड़ रुपये की लागत से देश को इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स का हब बनाने की तैयारी की है। सरकार का कहना है कि इन स्कीमों के जरिए 8 लाख करोड़ रुपये का इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोडक्ट्स का प्रोडक्शन होगा, जिनमें से 5.8 लाख करोड़ रुपये के उत्पादों का एक्सपोर्ट होगा। सरकार का कहना है कि इस सेक्टर में आने वाले सालों में 10 लाख नौकरियों का सृजन होगा। इन स्कीमों के तहत ऑटो, मेडिकल, इंडस्ट्रियल और टेलिकॉम मैन्युफैक्चरिंग की बात कही गई है, लेकिन सबसे ज्यादा जोर मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग पर है। हालांकि इसके बाद भी हमारे लिए चीन को मात देना मुश्किल हो सकता है।
बीते कुछ सालों में भारत ने मेड इन इंडिया मोबाइलों के मामले में सफलता हासिल भी की है, लेकिन यह पूरी तरह से स्वदेशी मोबाइल नहीं हैं। 2014 में भारत में 6 करोड़ मोबाइल डिवाइस की मैन्युफैक्चरिंग होती थी, जो 2019 में बढ़कर 29 करोड़ हो गया है। इलेक्ट्रॉनिक्स मिनिस्टर रविशंकर प्रसाद ने कहा कि दुनिया के मोबाइल मार्केट पर 5 से 6 कंपनियों का ही दबदबा है। उन्होंने कहा कि हम दुनिया की 5 बड़ी कंपनियों को भारत में मैन्युफैक्चरिंग बेस स्थापित करने के लिए आमंत्रित कर रहे हैं। यही नहीं सरकार 5 भारतीय कंपनियों को भी मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग के सेक्टर में प्रमोट करने की तैयारी में है। हालांकि इसके बाद भी जानकारों का मानना है कि भले ही सरकारी प्लान कागजों पर मजबूत है, लेकिन इसका सफल हो पाना मुश्किल है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक भारत में मैन्युफैक्चरिंग को लेकर कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है। ऐसे में कंपनियां 100 फीसदी कंपोनेंट्स का इंपोर्ट कर लेती हैं और फिर तमाम स्कीमों का फायदा भी ले लेती हैं। हालांकि सरकार का कहना है कि मैन्युफैक्चरर्स को कंपोनेंट मेकर्स के साथ भारत आना होगा। फिलहाल देश में 80 फीसदी मोबाइल जो तैयार होते हैं, उनके कंपोनेंट चीन से ही इंपोर्ट होते हैं और भारत में सिर्फ असेम्बलिंग ही की जाती है।
हम दिग्गज कंपनी ऐपल की ही बात करें तो वह विस्ट्रॉन, फॉक्सकॉन और Pegatron कंपनियों के साथ मिलकर काम करती है। ये कंपनियां ताइवान से काम करती हैं, लेकिन ये भी मैन्युफैक्चरिंग चीन से ही कराती हैं। इसी तरह से ओप्पो, Xiaomi और वीवो जैसी कंपनियां भी चीनी कंपनियां हैं और भारत में वे सिर्फ असेम्बलिंग ही करती हैं। जानकारों के मुताबिक इन कंपनियों का चीन में मैन्युफैक्चरिंग बंद कर पाना आसान नहीं है।
