एफएमसीजी, आभूषण तथा लघु मझोले उपक्रमों (एसएमई) जैसे अर्थव्यवस्था के प्रमुख क्षेत्र प्रभावित हुए हैं वहीं असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले बड़े संख्या में लोगों की नौकरी चली गई है। उद्योग मंडल एसोचैम ने रविवार (11 दिसंबर) को यह बात कही। एसोचैम के अध्यक्ष सुनील कनोड़िया ने कहा कि नोटबंदी को बिना तैयारियों के क्रियान्वित किया गया। संभवत: नोटबंदी के प्रभाव तथा चुनौतियों के बारे में ठीक से समझ नहीं बनाई गई। कनोड़िया ने कहा, ‘इसके लिए काफी काम किए जाने की जरूरत थी। जिस तरीके से इसे क्रियान्वित किया गया है मुझे भरोसा है कि प्रधानमंत्री भी इससे खुश नहीं होंगे।’ उन्होंने कहा कि नोटबंदी से मौजूदा परिदृश्य प्रभावित होगा। इसका सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर भी असर होगा।

सरकार द्वारा 500 और 1,000 का नोट बंद करने के बाद से जमीनी हालात पर कनोड़िया ने कहा कि आभूषण कंपनियों पर इसका सबसे अधिक असर हुआ है। उपभोक्ता सामान क्षेत्र और लघु एवं मझोले उद्योग भी इससे प्रभावित हुए हैं। यह पूछे जाने पर कि क्या इससे कंपनियों की आमदनी प्रभावित होगी, मौजूदा और अगली तिमाही में, कनोड़िया ने कहा कि कुछ कारोबार जो सीधे उपभोक्ताओं से जुड़ा है निश्चित रूप से इससे प्रभावित होगा। एसोचैम के अध्यक्ष कनोड़िया ने जोर देकर कहा है कि नोटबंदी के वांछित नतीजे हासिल करने के लिए ‘बड़े कर सुधारों’ की जरूरत है। विशेषरूप से कालेधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश की दृष्टि से। उन्होंने कहा कि आगामी बजट सरकार के लिए सबसे महत्वपूर्ण साबित होगा।

कनोड़िया ने कहा कि सरकार को कर दरों को इस हद तक कम करना होगा जिससे कालेधन का सृजन करने वाले लोगों को हतोत्साहित किया जा सके। उन्होंने कहा कि आयकर छूट की सीमा को 2.5 लाख रुपए से बढ़ाकर कम से कम 5 लाख रुपए किया जाना चाहिए। इसी तरह 15 से 20 लाख रुपए की आय पर 10 प्रतिशत की दर से कर लगना चाहिए। कनोड़िया ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की औसत दर को 18 से 15 प्रतिशत किया जाना चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या अर्थव्यवस्था में मध्यम अवधि में नौकरियों की कटौती होगी, उन्होंने कहा, ‘असंगठित क्षेत्र जहां दैनिक आधार पर श्रमिकों को मजदूरी मिलती है उस पर फिलहाल कुछ असर पड़ेगा। बिक्री प्रभावित होगी जिससे वेंडर दैनिक आधार पर भुगतान नहीं कर पाएंगे। अर्थव्यवस्था का लघु, असंगठित क्षेत्र इससे प्रभावित होगा।’ उन्होंने कहा कि संसद में गतिरोध अच्छा संकेत नहीं है। राजनीतिक दलों को अधिक परिपक्वता दिखाने की जरूरत है।