नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी पर कोष में गड़बड़ी का आरोप लगाने वाले एक परमार्थ ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने शनिवार को दिल्ली की एक अदालत को बताया कि सत्यार्थी समाज सेवा के नाम पर समाज को छल रहे हैं। हालांकि, सत्यार्थी ने इसे खारिज करते हुए कहा कि इस मुकदमे और आरोपों का मकसद निहित स्वार्थ वाले लोगों के उकसावे पर उनकी छवि धूमिल करना है।
सत्यार्थी के वकील प्रदीप दीवान ने दावा किया कि उनके मुवक्किल को ‘फर्जी’ मुकदमे में घसीटा जा रहा है और उन्हें नोबेल पुरस्कार मिलने के बाद से इसमें और तेजी से है। बहरहाल, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश कामिनी लाऊ इस दलील से सहमत नहीं हुईं और कहा कि काम ज्यादा अहम है। नाम कमाने वाले लोग रातोंरात इसे गंवा भी देते हैं। इसलिए उसमें मत पड़िए। सत्यार्थी ने अपनी अर्जी में मुकदमा दायर करने वाले परमार्थ ट्रस्ट के ट्रस्टियों को यह निर्देश देने की मांग की है कि वे पूरे मुकदमे के दौरान अपने बचाव में उन्हें होने वाले खर्च को वहन करें।
दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने उनकी अंतरिम अर्जी पर आदेश सुरक्षित रख लिया और फैसले की तारीख 14 दिसंबर तय कर दी। सत्यार्थी की अर्जी पर अपने जवाब में वादियों ने कहा कि इस मुकदमे में उनका न तो निजी मौद्रिक या भौतिक हित है और न ही उन्हें वेतन या किसी अन्य रूप में धन मिले हैं।
वादियों के पक्ष पर सत्यार्थी ने अपने खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों को नकारा। साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए गए सत्यार्थी और उनकी पत्नी पर वादियों ने आरोप लगाया है कि फर्जी खातों के जरिए उन्होंने बड़े पैमाने पर ट्रस्ट के धन की गड़बड़ी की। सत्यार्थी और उनकी पत्नी पहले ट्रस्ट के ट्रस्टी थे लेकिन 1994 में इससे अलग हो गए थे।