रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने सोमवार (29 अगस्त) को कहा कि मुद्रास्फीति के आंकड़े लक्ष्य के ऊपरी दायरे में बनी हुई है और नीतिगत ब्याज दरों में आगे कटौती केवल तभी की जा सकती है जब कि महंगाई दर और कम हो। खुदरा मुद्रास्फीति जुलाई में बढ़कर 6.07 प्रतिशत हो गई थी। यह पिछले करीब दो साल में इसका उच्चस्तर है। इसी तरह थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति पिछले 23 माह के उच्चस्तर 3.55 प्रतिशत पर पहुंच गई। राजन ने यहां जारी रिजर्व बैंक की 2015-16 की वार्षिक रिपोर्ट की प्रस्तावना में कहा है, ‘मुद्रास्फीति अभी भी रिजर्व बैंक के मुद्रास्फीति के लक्ष्य के उच्च्परी दायरे में बनी हुई है। जमाकर्ताओं की धनात्मक वास्तविक ब्याज दर (जमाओं पर मुद्रास्फीति से ऊपर की दर) प्राप्त करने की इच्छा और कार्पोरेट निवेशकों तथा खुदरा कर्ज लेने वालों की रिण पर निम्न घाषित ब्याज दर की जरूरत के बीच संतुलन बनाने की रिजर्व बैंक की आवश्यकता को देखते हुए नीतिगत दरों में कटौती की गुंजाइश केवल तभी बन हो सकती है जब मुद्रास्फीति में आगे और गिरावट आए।’

उन्होंने कहा कि मुद्रास्फीति को सरकार द्वारा निर्धारित चार प्रतिशत के स्तर पर लाना रिजर्व बैंक की अल्पकालिक वृहदआर्थिक प्राथमिकताओं में है। राजन ने कहा कि अब रिजर्व बैंक इस मामले में मुद्रास्फीति को धीरे धीरे नीचे लाने के रास्ते पर चलता आ रहा है। इसके तहत इसे जनवरी 2016 में छह प्रतिशत से नीचे लाने के बाद अब मार्च 2017 तक इसे पांच प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य है। राजन ने कहा कि रिजर्व बैंक पुरानी अटकी पड़ी परियोजनाओं को फिर से शुरू करने और बैंकों के बही खातों को साफ सुथरा बनाने के काम में सरकार और बैंकों के साथ मिलकर काम कर रहा है। यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि बैंकों के पास प्रावधान करने और नए कर्ज देने के लिये पूंजी उपलब्ध हो। उसके बाद ही भविष्य में दरों में कटौती संभव हो सकेगी। उन्होंने कहा कि आर्थिक वृद्धि में हालांकि कुछ तेजी के संकेत हैं लेकिन यह अभी भी देश की क्षमता से नीचे है।

राजन ने कहा कि निजी क्षेत्र का निवेश कमजोर है। पहले से स्थापित क्षमता का पूरा इस्तेमाल नहीं हो पाने और कुछ क्षेत्रों में सार्वजनिक निवेश धीमा रहने की वजह से आर्थिक वृद्धि की रफ्तार कुछ हल्की है। गवर्नर ने यह भी कहा कि ब्याज दरों में कटौती की बैंकों की इच्छा दबी हुई है। ‘न केवल कंपनियों के कम निवेश से बैंकों का नया कर्ज देना धीमा पड़ा है बल्कि उनकी फंसी कर्ज राशि से भी पूंजी की स्थिति सख्त हुई है और यही वजह है कि बैंक खुलकर नया कर्ज नहीं दे पा रहे हैं।’ उद्योगों और छोटे व्यवसायियों को कर्ज देने में निजी क्षेत्र के बैंकों के बजाय सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में ज्यादा अरुचि दिखाई देती है।

गवर्नर ने कहा कि मॉनसून की अच्छी वर्षा और इसके साथ ही सरकारी कर्मचारियों की जेब में 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के भुगतान से अधिक धन होने की वजह से उपभोक्ता मांग बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि अंतिम छोर पर जब मांग बढ़ेगी उसका असर उद्योगों में क्षमता इस्तेमाल पर दिखेगा और उसके बाद फिर निवेश भी बढ़ेगा। मौद्रिक नीति समिति के बारे में राजन ने कहा, ‘मौद्रिक नीति के मामले में पारदर्शिता, निरंतरता और स्वतंत्रता की मजबूती के लिए यह स्वागत योग्य कदम है।’ राजन ने बैंकों से कहा है कि वह ग्राहक अधिकार घोषणापत्र को लागू करने और शिकायत निपटान प्रक्रिया की निगरानी के लिए एक आंतरिक लोकपाल नियुक्त करने की जरूरत है।