साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के चेयरमैन से हटाए जाने के फैसले ने व्यापार जगत को चौंका दिया। उन्हें हटाने का क्या कारण रहा इसकी जानकारी नहीं दी गई। लेकिन बताया जाता है कि मिस्त्री के काम से टाटा ग्रुप का बोर्ड खुश नहीं था। टाटा संस के प्रवक्ता ने फैसले की जानकारी देते हुए बताया, ”बोर्ड ने सामूहिक बुद्धिमत्ता और प्रधान शेयरहोल्डर्स के सुझावों के आधार पर टाटा संस और टाटा ग्रुप के दीर्घकालीन हितों को ध्यान में रखते हुए बदलाव का फैसला किया है।” सूत्रों के अनुसार बोर्ड मीटिंग के दौरान कई बातें पहली बार हुई। मीटिंग के आखिर में मिस्त्री को हटाने का मामला उठा। इस पर साइरस मिस्त्री ने विरोध जताया और इसे अवैध बताया। बताया जाता है कि मिस्त्री ने टाटा रूल बुक की याद दिलाते हुए कहा कि बोर्ड मीटिंग में इस तरह का मसला उठाने से पहले 15 दिन का नोटिस दिया जाता है। लेकिन बोर्ड ने कहा कि इस फैसले के पक्ष में उनके पास कानूनी राय है।
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इस पर मिस्त्री ने कानूनी राय दिखाने को कहा। लेकिन बोर्ड ने कहा कि यहां कोर्ट की सुनवाई नहीं चल रही है। इस पर मिस्त्री ने फैसले को कोर्ट में चुनौती देने की बात कही। बताया जा रहा है कि वे बॉम्बे हाईकोर्ट जा सकते हैं। नौ सदस्यीय बोर्ड में से छह ने मिस्त्री को हटाने के पक्ष में वोट डाला। दो लोगों ने खुद को इससे दूर रखा। नौवें सदस्य खुद मिस्त्री थे जो इस प्रकिया में नहीं शामिल नहीं हुए। सोमवार को टाटा ग्रुप की बोर्ड मीटिंग में साइरस मिस्त्री को हटाने का फैसला लिया गया। मिस्त्री 2012 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन बने थे। उनकी जगह रतन टाटा को चार महीने के लिए अंतरिम चेयरमैन चुना गया है।
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रतन टाटा के 75 वर्ष की आयु पूरे करने पर 29 दिसंबर 2012 में उनकी सेवानिवृत्ति के बाद अब 48 वर्ष के हो चुके मिस्त्री को उनके उत्तराधिकारी के तौर पर चुना गया था। वह इस पद पर नियुक्त होने वाले दूसरे ऐसे सदस्य थे जो टाटा परिवार से नहीं थे। उनसे पहले टाटा खानदान से बाहर के नौरोजी सक्लतवाला 1932 में कंपनी के प्रमुख रहे थे।
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