चीन के साथ सीमा पर तनाव का जवाब भारत सरकार कारोबार के जरिए देने की कोशिश कर रही है। चीन के सामान के बहिष्कार के नारों के बीच सरकार पर भी इस तरह के कदम उठाए जाने का दबाव है। कहा जा रहा है कि इसके जरिए चीन को सबक सिखाया जा सकेगा। सोशल मीडिया पर टीवी जैसे चीन में तैयार उपकरणों को जलाए जाने की भी तस्वीरें तैर रही हैं। केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने मांग की है कि चीनी फूड बेचने वाले रेस्तरां पर रोक लगानी चाहिए, जबकि उनमें भारतीय शेफ ही नौकरी करते हैं और भारत के ही कृषि उत्पादों का इस्तेमाल किया जाता है। भले ही भारतीय सैनिकों पर चीनी सेना के क्रूर हमले की खबरों से भारतीयों की चिंता स्वाभाविक है, लेकिन इसके बाद भी कारोबार के जरिए चीन को जवाब देना एक सही तरीका नहीं हो सकता। जानें, कैसे…

व्यापारिक असंतुलन से नहीं कोई नुकसान: चीनी सामान के बहिष्कार को लेकर एक तर्क यह दिया जा रहा है कि भारत चीन के साथ कारोबार में व्यापारिक असंतुलन का शिकार है। किसी देश के साथ व्यापार में ट्रेड डेफिसिट होना या फिर सरप्लस होने से किसी भी देश की अर्थव्यवस्था मजबूत या कमजोर नहीं होती। उदाहरम के तौर पर हम ऐसे 25 देशों को देख सकते हैं, जिनके साथ भारत ट्रेड सरप्लस में है, जैसे अमेरिका, ब्रिटेन और नीदरलैंड। लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि भारत की अर्थव्यवस्था इन देशों से बेहतर है। इसके अलावा चीन समेत 22 ऐसे देश भी हैं, जिनके साथ भारत ट्रेड डेफिसिट में है, जैसे- फ्रांस, जर्मनी, नाइजीरिया, साउथ अफ्रीका, यूएई, कतर, रूस और दक्षिण अफ्रीका आदि। चीन के साथ व्यापारिक असंतुलन की बात करें तो भारतीय ग्राहक उससे सामान की खरीद का फैसला व्यक्तिगत तौर पर लेते हैं। वे जापान, फ्रांस या फिर भारत के ही सामान पर कीमत और सुविधा के लिहाज से दांव नहीं लगाते। इससे स्पष्ट है कि एक तरफ चीनी कंपनियों को फायदा हो रहा है तो फिर भारतीय ग्राहकों को भी लाभ मिल रहा है।

गरीब भारतीय होंगे प्रभावित: यदि चीन के सामान की खरीद पर रोक लगती है तो देश के गरीब तबके के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिनके लिए महंगा सामान खरीदना मुश्किल है। मान लीजिए कि चीन के एसी के बजाय ग्राहक जापान के एसी खरीदते हैं तो उन्हें ज्यादा दाम चुकाने होंगे। ऐसी स्थिति में उनके पास दो विकल्प होंगे कि वे या तो एसी जैसे महंगे सामान की खरीद ही न करें या फिर भारतीय कंपनियों के कम गुणवत्ता वाले एसी को खरीदें। इस तरह से देश के गरीब तबके को ही इसका नुकसान उठाना होगा।

भारत के एक्सपोर्ट बिजनेस को भी लगेगा झटका: यदि चीन से सामान के आयात पर रोक लगती है तो उससे भारत के प्रोड्यूसर्स और एक्सपोर्टर्स को भी नुकसान होगा। यह बात सही है कि चीन से आयात से कुछ भारतीय कारोबारों को नुकसान होता है, लेकिन यह उन लोगों को ही होता है, जो प्रतिस्पर्धा में कमजोर हैं। हालांकि सक्षम कारोबारियों के लिए यह बेहतर है। इसकी वजह यह है कि कई कंपनियां अपने उत्पादन के लिए कच्चे माल का आयात चीन से करते हैं। ऐसे में यदि चीन से आयात पर रोक लगेगी तो उन्हें कच्चे माल की उपलब्धता कम हो जाएगी।

आयात रोकने से भारत ही नुकसान: देश में चीन को कारोबारी जगत में किनारे लगाकर झटका देने की बात की जा रही है, लेकिन इससे भारत को भी बड़ा नुकसान होगा। इसकी वजह यह है कि भारत चीन से जो आयात करता है, उसमें चीन के निर्यात की कुल हिस्सेदारी महज 3 फीसदी ही हिस्सेदारी है। इसके उलट भारत के निर्यात में चीन भेजे जाने वाले सामान की 5 फीसदी हिस्सेदारी है। इस लिहाज से देखें तो चीन से कारोबार रोकने पर भारत का ही नुकसान होगा।

भारत की विश्वसनीयता होगी कम: चीनी कंपनियों को दिए गए कॉन्ट्रैक्ट्स भी वापस लिए जाने की मांग कर रही है। इससे भले ही भारत कुछ वक्त के लिए चीन को झटका दे पाए, लेकिन लंबे समय में उसकी विश्वसनीयता का संकट होगा। खासतौर पर एफडीआई हासिल करने की भारत की कोशिश इससे प्रभावित होगी।