देश में नकद रहित लेन-देन पर जोर बढ़ रहा है। लेकिन वैश्विक स्तर पर प्रचलन में मुद्रा के कुल मूल्य में निरंतर वृद्धि और कुल जीडीपी में उनकी हिस्सेदारी पर लगाम लगाने की एक चुनौती बनी हुई है। यह प्रवृत्ति विशेष रूप से अमेरिका, स्विट्जरलैंड तथा यूरो क्षेत्र में देखी जा रही है। कालाधन और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 500 और 1,000 रुपए के नोट पर पाबंदी के साथ अब जोर डिजिटल भुगतान पर है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक गतिविधियों में मुद्रा के चलन में लगातार वृद्धि नकद रहित और डिजिटल अर्थव्यवस्था के रास्ते में प्रमुख बाधा है। भारत में मुद्रा-जीडीपी अनुपात करीब 12-13 प्रतिशत है। यह अमेरिका, ब्रिटेन तथा यूरो क्षेत्र समेत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले कहीं अधिक हैं। हालांकि यह जापान से कम हैं जहां यह करीब 18 प्रतिशत है। नकद-जीडीपी अनुपात से यह पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में कितनी नकद राशि का उपयोग हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ एक और उभरती अर्थव्यवस्था इंडानेशिया में यह अनुपात केवल पांच प्रतिशत है।

स्विस नेशनल बैंक के आंकड़े के अनुसार स्विट्जरलैंड को देखा जाए तो वहां बैंक नोट और जीडीपी के बीच अनुपात 2007 से बढ़ रहा है। इसके अलावा 1,000 और 500 स्विस फ्रैंक का कुल मुद्रा में योगदान 62 प्रतिशत से अधिक है। अमेरिका और यूरो क्षेत्र में भी यही प्रवृत्ति है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के आंकड़े के अनुसार वर्ष 2015 के अंत में प्रचलन में 38.1 अरब डॉलर से अधिक राशि थी और 2000 से इसमें वृद्धि हो रही है। वहीं ड्यूश्च बैंक की हाल की रिपोर्ट के अनुसार यूरो क्षेत्र में नकदी 2016 की सितंबर तिमाही में बढ़कर 1100 अरब यूरो पहुंच गयी है जो 2003 के मुकाबले तीन गुना अधिक है। भारत के संदर्भ में गूगल और बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार डिजिटल भुगतान बाजार 2020 तक जीडीपी का करीब 15 प्रतिशत होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का डिजिटल भुगतान बाजार 2020 तक 500 अरब डॉलर का हो जाएगा। देश को नकद रहित अर्थव्यवस्था में बदलने के लिये सरकार ने एक समिति गठित की है जो डिजिटल भुगतान पर गौर करेगी।