सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में वाहनों के स्ट्रक्चर में किसी भी तरह के बदलाव को गैरकानूनी ठहरा दिया है। जस्टिस अरुण मिश्रा और विनीत सचान की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि किसी भी वाहन के मैन्यूफैक्चरर डिजाइन में बदलाव नहीं किया जा सकता। कोर्ट के आदेश के मुताबिक वाहनों के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट से अलग और स्थानीय क्षेत्रीय ट्रांसपोर्ट ऑफिस को बिना जानकारी दिए किसी भी तरह का मोडिफिकेशन कराना गैरकानूनी माना जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के मुताबिक वाहन का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट से इतर रंग बदलना भी गैरकानूनी कृत्यों की श्रेणी में आता है। हां, यदि आपको अपने वाहन के रंग में थोड़े बहुत बदलाव करने हैं तो फिर आरटीओ से इजाजत लेकर यह बदलाव किए जा सकते हैं। इनके अलावा वाहनों में तय मानक से बड़े पहिए लगाने या वाहन के टायरों के बीच की चौड़ाई को बढ़ाना भी गैरकानूनी माना जाएगा। हालांकि वाहन के आयाम (डाइमेंशन) में थोड़ा-बहुत बदलाव किया जा सकता है और यह गैरकानूनी नहीं माना जाएगा। बता दें कि मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 52 के तहत मोडिफिकेशन के बाद वाहन का वजन 2% से अधिक नहीं बढ़ना चाहिए।
हालांकि कोर्ट ने जहां बड़े बदलावों को नामंजूरी दे दी है, वहीं वाहनों में छोटे-मोटे बदलाव की इजाजत भी दे दी है। सबसे अहम बात ये है कि गाड़ियों में विकलांगों की सुविधा से हिसाब से कोई बदलाव करना मान्य है। इसके अलावा गाड़ियों में केन्द्र सरकार द्वारा सुझाए गए सुरक्षा उपायों का रिफिटमेंट कराना भी मान्य है। कार के रंग में थोड़ा बहुत बदलाव भी किया जा सकता है, हालाकि इसके लिए उपभोक्ता को स्थानीय आरटीओ ऑफिस जाकर इसकी इजाजत लेनी होगी। वाहन का इंजन भी बदला जा सकता है। हालांकि इसके लिए उपभोक्ता को आरटीओ ऑफिस से इजाजत लेनी होगी। इजाजत ना लेने की स्थिति में वाहन का रजिस्ट्रेशन रद्द भी किया जा सकता है।