ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार के खिलाफ मध्यस्थता अदालत में जीत हासिल की है। इसके साथ ही अब भारत सरकार को 8 हजार करोड़ रुपये चुकाने होंगे।

करीब 3 महीने के भीतर दूसरी बार भारत सरकार को किसी विदेशी कंपनी से शिकस्त मिली है। इससे पहले वोडाफोन ने भारत सरकार के खिलाफ 20 हजार करोड़ रुपये के मुकदमे में जीत हासिल की थी। इन दोनों मामलों में भारत सरकार की हार की वजह करीब 8 साल पुराना कानून है। साल 2012-13 के आम बजट में केंद्र की यूपीए सरकार ने आयकर कानून 1961 में एक संशोधन किया था।

ये संशोधन रेट्रोस्पेक्टिव टैक्स से जुड़ा था। इस नए संशोधन में ये प्रावधान है कि भारत में कारोबार करने वाली कंपनियों के विदेश में होने वाले सौदों पर भी टैक्स लगाया जा सके। इसके दायरे में कंपनियों की पुरानी डील भी शामिल हैं। यही वजह है कि वोडाफोन के 2007 की डील के लिए भी भारत सरकार ने टैक्स मांगे थे।

केयर्न एनर्जी का क्या था मामला: ब्रिटिश कंपनी केयर्न एनर्जी से भारत सरकार ने टैक्स के तौर पर 10,247 करोड़ रुपये मांगे थे। दरअसल, साल 2006-07 में केयर्न द्वारा अपने भारत के व्यापार के आंतरिक पुनर्गठन करने के बाद सरकार ने टैक्स की मांग की थी।

इसके बाद केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। केयर्न के मुताबिक न्यायाधिकरण ने आम सहमति से फैसला सुनाया कि भारत ने ब्रिटेन-भारत द्विपक्षीय निवेश संधि के तहत केयर्न के प्रति अपने दायित्वों का उल्लंघन किया है और उसे हर्जाना देना होगा।