7th Pay Commission: सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में पे-स्ट्रक्चर (वेतन ढांचा) में बदलाव के साथ ही पेंशन से जुड़े प्रावधानों में भी व्यापक बदलाव की व्यवस्था की गई है। सरकार ने इसके अनुसार पेंशन में कई बदलाव किए हैं। इससे केंद्रीय कर्मचारियों के साथ ही राज्य स्तर के कर्मचारी भी प्रभावित हुए हैं। यही वजह है कि नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) के खिलाफ विरोध के स्वर उठने लगे हैं। दरअसल, सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को आधार बनाते हुए सरकार ने NPS लागू किया। इसमें पेंशन फंड के एक हिस्से को बाजार में लगाने या निवेश करने का प्रावधान जोड़ा गया है। इसका मतलब यह हुआ कि पेंशन फंड का संबंधित हिस्सा मार्केट रिस्क पर निर्भर हो जाएगा। कर्मचारी इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इससे उनका पेंशन के साथ भविष्य में उनकी वित्तीय सुरक्षा भी प्रभावित होगी। केंद्रीय कर्मचारी एनपीएस में सरकार के योगदान को नाकाफी बता रहे हैं। उन्होंने इसमें बदलाव की मांग भी की है। हाल ही में इसी मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल को भी कर्मचारियों का विरोध झेलना पड़ा था।
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने NPS में सब्सक्राइबर (कर्मचारी या लाभार्थी) को अन्य वित्तीय विकल्प मुहैया कराने की व्यवस्था की है। इसके तहत ही पेंशन फंड के एक हिस्से का निवेश करने का प्रावधान किया गया है। NPS के अमल में आने के बाद विभिन्न संगठनों और कर्मचारियों ने सरकार की ओर से पेंशन में 10 फीसद के योगदान को लेकर आयोग के समक्ष अपना पक्ष रखा था। इसे अपर्याप्त बताया गया था। सातवें वेतन आयोग के तहत केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित समय-सीमा के अंदर तय योगदान को जमा न कराने को लेकर भी आदेश दिए गए। इसके मुताबिक, समय पर राशि जमा न कराने की स्थिति में चक्रवृद्धि ब्याज के साथ देने की व्यवस्था की गई है।
पेंशन फंड रेग्युलेटरी एंड डेवलपमेंट एक्ट को लेकर भी आयोग ने महत्वपूर्ण सिफारिश की है। इसके तहत NPS में पेंशन धारकों के लिए दो खातों (टायर-1 और टायर-2) की व्यवस्था की है। टायर-1 खाता रिटायरमेंट अकाउंट है, जिसमें लाभार्थी को कई तरह के टैक्स छूट दी गई है। वहीं, टायर-2 खाते के जरिये NPS सब्सक्राइबर निवेश कर सकते हैं और जरूरत पड़ने पर वे किसी भी वक्त पैसा निकाल सकते हैं। इसके अलावा NPS से जुड़ी शिकायतों के निवारण के लिए लोकपाल की नियुक्ति की भी व्यवस्था की गई है।