उत्तराखंड राज्य की सीमा से सटे यूपी के बिजनौर जिले का मंडावर क्षेत्र का सिर्फ एक कस्बा नहीं, बल्कि प्राचीन भारत की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है। इस इलाके का जिक्र 7वीं शताब्दी में चीन से आए महान यात्री ह्वेनसांग ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक Si-Yu-Ki में किया था। उन्होंने इस क्षेत्र के लिए Mo-ti-pu-lo (मततपुर) का इस्तेमाल किया।

बौद्ध शिक्षा का केंद्र रहा है मंडावर

ह्वेनसांग के अनुसार, यह इलाका अन्न, फल और फूलों की उपज व सुखद जलवायु के लिए प्रसिद्ध था। यहां के लोग ईमानदार, विद्वान और धर्मपरायण थे। उस समय मंडावर में 10 से अधिक बौद्ध विहार और 50 से अधिक मंदिर मौजूद थे। उन्होंने अपनी पुस्तक मे बताया कि प्रसिद्ध बौद्ध गुरु गुणप्रभ ने यहीं पर तत्त्वसंदेश शास्त्र सहित 100 से अधिक ग्रंथों की रचना की।

उनकी पुस्तक में यह भी बताया गया है कि कश्मीर के विद्वान सांघभद्र और विमलमित्र ने भी यहीं शिक्षा दी और अपने जीवन का अंत किया। उनकी स्मृति में बने स्तूप आज भी मंडावर के प्राचीन गौरव की गवाही देते हैं।

मंडावर का पुरातात्विक महत्व

ह्वेनसांग ने अपनी किताब में बताया है कि मंडावर का सबसे प्राचीन भाग दक्षिण-पूर्वी हिस्से में स्थित एक टीले के रूप में है, जो आधा मील क्षेत्र में फैला है। इसके ठीक बीच में एक प्राचीन ढांचा है। यहीं पर बनी जामा मस्जिद का निर्माण ग्रे सैंडस्टोन के विशाल पत्थरों से हुआ है।

माना जाता है कि इसमें प्राचीन हिंदू मंदिर की सामग्री का उपयोग हुआ। इसके पास ही कुण्डा ताल और अन्य टीले मौजूद हैं जिन्हें प्राचीन नगर के अवशेष माना जाता है। ब्रिटिश पुरातत्वविद एलेक्जेंडर कनिंघम ने भी इसे एक विशाल प्राचीन नगर का हिस्सा बताया था। अन्य इतिहासकारों के अनुसार,  वर्ष 1114 ईस्वी में अग्रवाल व्यापारी द्वारका दास यहाँ आकर बसे और इसके बाद मंडावर एक प्रमुख व्यापारिक स्थल बन गया।