कई बार ऐसा होता है कि मंदिर में प्रसाद या भंडारे के लिए अक्सर टेंट हाउस से बर्तन मंगाए जाते हैं। जानें प्रेमानंद जी महाराज ने इस पर क्या कहा...
इन बर्तनों में पहले कभी नॉनवेज भी बना होता है और फिर उन्हीं बर्तनों में प्रसाद बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाया जाता है। क्या ऐसा करना सही है?
इस पर गुरुदेव ने जवाब दिया कि वृंदावन जैसे पवित्र स्थलों में जैसे राधा वल्लभ जी, बिहारी जी, राधा रमण जी आदि मंदिरों में सब कुछ पूरी तरह पर्सनल और शुद्ध होता है।
गुरुदेव ने बताया कि वहां की रसोई में कोई बाहरी पात्र या व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता।
गुरुदेव ने आगे स्पष्ट कहते हुए कहा कि ऐसे बर्तनों में बना भोजन, जिसमें पहले मांस पका हो, वह अवक्ष भोजन कहलाता है।
प्रेमानंद महाराज ने बताया, उसे भगवान को भोग नहीं लगाया जा सकता। ऐसा भोजन राक्षसी और आसुरी बुद्धि को जन्म देता है, इसलिए इसे पूरी तरह त्याज्य बताया गया।
वहीं प्याज और लहसुन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि ये वस्तुएं मांस की तरह निषिद्ध नहीं हैं। जैसे आलू, गाजर, मूली ज़मीन के नीचे पैदा होते हैं, वैसे ही प्याज-लहसुन भी होते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि जिन बर्तनों में सिर्फ प्याज-लहसुन पका हो, उन्हें अच्छे से साफ करके सामान्य भोजन पकाया जाए तो वह खाया जा सकता है। लेकिन मांस वाले बर्तनों में बना खाना नहीं खाना चाहिए, न ही भगवान को उसमें भोग लगाना चाहिए।