Jun 11, 2025

भगवान हर जगह हैं, फिर भी तीर्थ क्यों जाएं? प्रेमानंद महाराज का जवाब सुनकर सोच बदल जाएगी

Archana Keshri

भगवान को सर्वव्यापी माना जाता है, वे हर जगह विद्यमान हैं, फिर तीर्थ यात्रा पर क्यों जाएं? यह सवाल अक्सर लोगों के मन में आता है, खासकर जब हम आधुनिकता और जीवन की भागदौड़ में फंसे होते हैं।

लेकिन इस सवाल का जवाब बहुत ही सरल और गहरे अर्थों से भरा है, जैसा कि प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में एक वीडियो में बताया। प्रेमानंद महाराज ने एक व्यक्ति के सवाल का जवाब देते हुए एक बहुत ही सुंदर उदाहरण भी दिया।

दरअसल, प्रेमानंद महाराज से एक व्यक्ति ने सवाल किया कि, "भगवान जब कण-कण में हैं तो हमें धार्मिक स्थलों या तीर्थस्थलों पर जाना चाहिए या नहीं।"

इस सवाल का जवाब देते हुए प्रेमानंद महाराज ने कहा, "मेहंदी में लालिमा होती है लेकिन मेहंदी के पेड़ को अगर चीरा जाए तो उसमें कहीं लालिमा नहीं होती है।"

उन्होंने इसे तीर्थ यात्रा के महत्व से जोड़ा और आगे कहा, "ठीक उसी तरह ये तीर्थ अध्यात्म के शक्ति है। जैसे-गंगा जी में स्नान करके बहुत अच्छा लगता है लेकिन अगर गंगा जी को मैला करोगे या उनमें कूड़ा फेकोगे तो कुछ अनुभव नहीं होगा।"

उन्होंने कहा, "अगर गंगाजी के दर्शन के लिए जा रहे हो तो साष्टांग दंडवत प्रणाम करके गंगाजी का जल माथे पर लगाओ और उसके बाद 5 से 7 बार डुबकी लगाओ। उससे बहुत ही अच्छा अनुभव होगा।"

प्रेमानंद महाराज ने आगे बताया, "वहीं, अगर वृंदावन जा रहे हो तो परिक्रमा लगाओ, बांके बिहारी के दर्शन करो। साथ ही किसी का दिया हुआ कुछ मत खाओ, माथे पर रजरानी लगाओ, नाम जप करो।"

उन्होंने आगे कहा, "ये परम पवित्र स्थान इसलिए बनाए गए हैं कि हम लोगों को अध्यात्म का सहयोग मिले। हमसे जो गलतियां हुई हैं या हमसे जो पाप हो गए हैं वो सभी नष्ट हो जाएं।"

आगे प्रेमानंद महाराज कहा कि ,"इन तीर्थों को बनाया इसलिए गया है कि ताकि इन जगहों पर जाकर हमारे सभी कर्म पवित्र हो जाएं।"

प्रेमानंद महाराज के अनुसार, तीर्थ यात्रा का असली उद्देश्य केवल धार्मिक स्थलों पर जाना नहीं है, बल्कि वह एक अवसर है जिससे हम अपने कर्मों को शुद्ध कर सकें। इन पवित्र स्थलों पर जाकर, हम अपने जीवन की गलतियों से मुक्त होते हैं और परमात्मा से जुड़ने का अनुभव करते हैं।

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