Jun 25, 2025

क्या आपका बच्चा 'डिजिटल डोपामाइन' का शिकार है? जानिए लक्षण और समाधान

Archana Keshri

आजकल का डिजिटल युग हमारे बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है। एक ओर जहां टेक्नोलॉजी ने जीवन को सुविधाजनक और रोमांचक बना दिया है, वहीं दूसरी ओर डिजिटल डोपामाइन की लत भी एक गंभीर समस्या बन गई है।

यह लत बच्चों को इस तरह प्रभावित कर रही है कि वे हर समय अपने स्मार्टफोन या अन्य डिजिटल डिवाइसेस में खोए रहते हैं, जिससे उनका मानसिक और शारीरिक संतुलन बिगड़ने लगा है।

डिजिटल डोपामाइन क्या है?

डोपामाइन एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो हमारे मस्तिष्क में खुशी और इनाम की भावना पैदा करता है। जब हम कुछ अच्छा अनुभव करते हैं, जैसे किसी पोस्ट पर लाइक मिलना, कोई नया मैसेज प्राप्त करना या गेम में कोई नया लेवल पार करना, तो हमारा मस्तिष्क डोपामाइन रिलीज करता है, जो हमें खुशी का एहसास कराता है।

इसी वजह से हम बार-बार अपने फोन को चेक करते हैं, और हर बार नया कंटेंट देखने की इच्छा होती है। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे लत का रूप ले लेती है, जो हमारी मानसिक स्थिति को प्रभावित करती है। चलिए जानते हैं डिजिटल डोपामाइन की लत के नुकसानों के बारे में:-

ध्यान में कमी:

अत्यधिक डिजिटल मीडिया उपयोग से बच्चों का ध्यान भटक जाता है। पढ़ाई में मन नहीं लगता, और वे छोटे-छोटे कामों को भी करने में आलसी हो जाते हैं।

नींद की कमी:

देर रात तक मोबाइल या अन्य उपकरणों का उपयोग करने से नींद में कमी होती है, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

मनोबल पर असर:

सोशल मीडिया पर लंबा समय बिताने से बच्चों में तनाव, चिंता और अवसाद जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।

सामाजिक रिश्तों में कमी:

डिजिटल मीडिया का अत्यधिक उपयोग पारिवारिक और सामाजिक संबंधों को कमजोर कर सकता है, क्योंकि बच्चे परिवार के साथ समय बिताने के बजाय डिजिटल दुनिया में खो जाते हैं।

कैसे पहचाने और बचाएं?

स्मार्टफोन का सीमित उपयोग: सबसे पहले, माता-पिता को बच्चों के डिजिटल उपयोग पर नजर रखनी चाहिए। बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि डिजिटल डिवाइस का सही तरीके से इस्तेमाल कैसे करें। बच्चों के लिए स्क्रीन टाइम को सीमित करना बेहद जरूरी है।

कम्युनिकेशन और अंडरस्टैंडिंग:

बच्चों से संवाद करें, यह समझने की कोशिश करें कि वे डिजिटल उपकरणों का इस्तेमाल क्यों करते हैं। क्या वे सामाजिक दबाव के कारण सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं या क्या वे अकेलापन महसूस कर रहे हैं?

बाउंड्री बनाएं:

परिवार में कुछ नियम और बाउंड्री बनाएं, जैसे खाना खाते समय या रात के समय डिवाइस का उपयोग न करना। बच्चों को शारीरिक गतिविधियों में शामिल करें, जैसे खेलकूद या किताबों का पढ़ना।

स्कूलों की भूमिका:

स्कूलों को भी इस दिशा में योगदान देना चाहिए। बच्चों को डिजिटल डिटॉक्स और अच्छी डिजिटल आदतों के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। स्कूलों में ऐसी कार्यशालाएं और प्रोग्राम आयोजित किए जा सकते हैं, जहां बच्चों को डिजिटल मीडिया के संतुलित उपयोग के बारे में जानकारी दी जाए।

स्मार्टफोन उपयोग की निगरानी:

माता-पिता को स्मार्टफोन पर ऐप्स लिमिट और नोटिफिकेशन को नियंत्रित करने के लिए कुछ ऐप्स का इस्तेमाल करना चाहिए। इससे बच्चे बिना किसी बाहरी दबाव के खुद अपनी डिजिटल आदतों को सुधार सकते हैं।

Chanakya Niti: इन 3 लोगों से दुश्मनी लेना पड़ सकता है महंगा, भूलकर भी न करें ये गलती