कौन इस घर की देख-भाल करे, रोज इक चीज टूट जाती है। (जौन एलिया)
शाम भी थी धुआं धुआं हुस्न भी था उदास उदास, दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं। (फिराक गोरखपुरी)
दुनिया की महफिलों से उकता गया हूं या रब, क्या लुत्फ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो। (अल्लामा इकबाल)
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता, वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता (दाग देहलवी)
इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें, इतनी जगह कहां है दिल-ए-दाग-दार में। (बहादुर शाह ज़फर)
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं, उम्रें बीत जाती हैं दिल को दिल बनाने में। (बशीर बद्र)
फकत निगाह से होता है फैसला दिल का, न हो निगाह में शोखी तो दिलबरी क्या है (अल्लामा इकबाल)
तुम जमाने की राह से आए, वर्ना सीधा था रास्ता दिल का (बाकी सिद्दीकी)
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका, मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया (जिगर मुरादाबादी)