Jun 27, 2025
आज दुनिया जिस तेजी से ग्लोबल वार्मिंग, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन की ओर बढ़ रही है, ऐसे में हर क्षेत्र में बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा रही है। परिवहन क्षेत्र इसका एक बड़ा हिस्सा है।
पारंपरिक पेट्रोल-डीजल वाहनों की जगह अब इलेक्ट्रिक व्हीकल्स (EVs) ले रहे हैं। लेकिन सवाल यह है—क्या ये ईवी वास्तव में पर्यावरण को बचा रहे हैं? आइए जानते हैं विस्तार से।
पेट्रोल और डीजल इंजन वाले वाहनों से चलने पर हर किलोमीटर में औसतन 120-150 ग्राम CO₂ उत्सर्जित होती है। वहीं ईवी से यह उत्सर्जन शून्य के करीब होता है, यदि वह बिजली नवीकरणीय स्रोतों (जैसे सोलर या विंड एनर्जी) से ली गई हो।
ईवी से किसी भी प्रकार का धुआं नहीं निकलता, जिससे शहरों में वायु गुणवत्ता सुधरती है। खासकर दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर जैसे प्रदूषित शहरों में इसका असर ज्यादा देखने को मिल रहा है।
ईवी लगभग बिना आवाज के चलते हैं, जिससे ध्वनि प्रदूषण भी घटता है। यह खासतौर पर शहरी इलाकों के लिए राहत की बात है।
हालांकि ईवी के उपयोग से प्रदूषण घटता है, लेकिन इसके बैटरी निर्माण और बिजली उत्पादन प्रक्रिया में कुछ पर्यावरणीय चिंताएं हैं—
ईवी की बैटरियां लिथियम, कोबाल्ट और निकेल जैसी दुर्लभ धातुओं से बनती हैं, जिनके खनन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। अगर बैटरियों का रीसाइक्लिंग सिस्टम मजबूत न हो, तो यह भविष्य में चुनौती बन सकता है।
अगर ईवी चार्जिंग के लिए कोयले से बनी बिजली का उपयोग हो रहा है, तो उत्सर्जन कम तो होगा, लेकिन पूरी तरह से शून्य नहीं।
भारत सरकार भी ईवी को बढ़ावा दे रही है — ‘फेम योजना’, टैक्स छूट, चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार आदि इसके उदाहरण हैं।
1 लाख ईवी कारें सालाना लगभग 50,000 टन CO₂ उत्सर्जन कम करती हैं। इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन, खासकर शहरों में, पेट्रोल बचाने और वायु गुणवत्ता सुधारने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: अगर ईवी चार्जिंग 100% ग्रीन एनर्जी से हो, तभी इसका पूर्ण पर्यावरणीय लाभ मिलेगा।
बैटरियों का दोबारा उपयोग और सुरक्षित निपटान जरूरी है।
सिर्फ कार नहीं, इलेक्ट्रिक साइकिल, स्कूटर और बसों को भी बढ़ावा मिलना चाहिए।
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