Jul 02, 2024

अंतिम संस्कार के समय अपने मृत रिश्तेदारों का मांस खा जाती थी ये जनजाति, जानिए कैसी है ये परंपरा

Archana Keshri

दुनिया भर में विभिन्न जनजातियों और संस्कृतियों की परंपराएं अनोखी और विविधतापूर्ण होती हैं। इनमें से कुछ परंपराएं हमारे लिए असामान्य और अकल्पनीय हो सकती हैं। इनकी ये रिवाज और परंपराएं आम लोगों से बिल्कुल अलग होते हैं।

Source: Bing AI Image Generator

दुनियाभर में कई रहस्यमयी जनजातियां पाई जाती हैं जो आज भी हजारों साल पुरानी परंपराओं का पालन करती हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है पापुआ न्यू गिनी में पाई जाने वाली फोर जनजाति की।

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ये जनजाति रहस्यमयी और खतरनाक मानी जाती है। इनकी परंपरा के बारे में जानकर आप हैरान हो जाएंगे। इस जनजाति में लोग उन्हीं लोगों को खा जाते थे, जिन्हें वे बेइंतहा प्यार करते थे।

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एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1960 के दशक तक इस जनजाति के कबीले में परंपरा थी कि वह लोग परिजनों की मौत के बाद उन्हें जलाने या दफनाने की जगह खा जाते थे। ये लोग अपने प्रियजनों के सम्मान के तौर पर इस प्रथा का पालन करते थे।

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दरअसल, यह जनजाति मानती थी कि अगर शरीर को दफनाया जाता है या कहीं पर रखने से कीड़े खाते हैं। इससे अच्छा है कि मृतक से प्यार करने वाले लोग शरीर को खा जाएं।

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अगर कोई अपनी मौत के बाद ऐसा नहीं चाहता है, तो वो जीते जी बता सकता था। हालांकि, ज्यादातर लोग अपनी मृत्यु के बाद अपने परिवार द्वारा खाया जाना सम्मान की बात मानते थे।

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फोर जनजाति के लोग अंतिम संस्कार के समय एक दावत का आयोजन करते थे, जिसमें वो मृत रिश्तेदार का मांस खाते थे। वहीं, महिलाएं उनका दिमाग खाती थीं।

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लेकिन इस जनजाति को यह नहीं पता था कि इंसान का दिमाग खाने से इंफेक्शन हो सकता है जिससे मौत भी हो सकती है। साथ ही इससे महामारी भी फैल सकती है।

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दरअसल, इंसानी दिमाग में प्रायन्स नामक प्रोटीन पाया जाता है। इस प्रोटीन से 'कुरु' नाम की घातक न्यूरोलॉजिकल बीमारी हो सकती है, जो मौत का कारण बन सकती है।

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1950 के दशक में मानव विज्ञानी शर्ली लिंडेनबॉम ने इस बीमारी के कारण का पता लगाया था। वहीं, इस जनजाति द्वारा अपनाई जाने वाली इस परंपरा के कारण महामारी फैल गई, जिसमें 1957 से 2005 तक लगभग 2,700 मौतें हुई थीं।

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