आज के समय में गंदे कपड़ों को साफ करने के लिए मार्केट में कई सारे प्रोडक्ट मिल जाएंगे। इन सभी की मदद से कपड़े आसानी से धुल जाते हैं और ज्यादा मेहनत भी नहीं लगती।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जब दुनिया में साबुन और डिटर्जेंट नहीं हुआ करते थे तब कपड़े कैसे साफ किए जाते थे? आखिर इन प्रोडक्ट्स के बिना लोग अपने कपड़े कैसे चमकाते थे?
बता दें, जब साबुन और डिटर्जेंट जैसी चीजें नहीं थीं, तब लोग कपड़े धोने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करते थे। इनमें से कुछ तरीके आज भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
भारत में कुछ मशहूर धोबी घाटों पर आज भी कपड़े धोने के लिए ना तो साबुन का इस्तेमाल होता है और ना ही डिटर्जेंट का। चलिए आपको बताते हैं उन तरीकों के बारे में।
पहले कपड़े दो तरह से साफ किये जाते थे। आम लोग अपने कपड़े गर्म पानी में डालते थे। वे इसे उबालकर फिर निकालकर थोड़ा ठंडा करके पत्थरों पर पीटते थे। इसकी मदद से कपड़ों से मैल निकल जाती थी।
वहीं, महंगे और मुलायम कपड़ों को धोने के लिए लोग रीठा का इस्तेमाल करते थे। रीठा एक फल है जिसके छिलके से झाग बनता है। यह प्राकृतिक साबुन की तरह काम करता है और कपड़ों को साफ करने में मदद करता है।
कपड़े धोने के लिए पहले रीठा के फलों को पानी डालकर गर्म किया जाता था। जब उसमें झाग बन जाते थे तब इसे निकालकर कपड़ों पर डाला जाता था और पत्थर या लकड़ी की मदद से रगड़कर चमकाया जाता था।
इस तकनीक से न सिर्फ गंदे कपड़े साफ होते थे, बल्कि वो कीटाणुमुक्त भी हो जाते थे। रीठा कपड़ों के साथ-साथ शरीर के लिए भी लाभदायक होता है। ऑर्गेनिक होने की वजह से इससे कोई साइड इफेक्ट्स नहीं होते।