मेवाड़ के किस्से भला कौन नहीं सुना होगा। मेवाड़ की धरती पर एक से बढ़कर एक योद्धाओं ने जन्म लिया।
मुगल काल में जब अकबर का शासन था तो वो मेवाड़ पर कब्जा करना चाहता था लेकिन उसके सामने महाराणा प्रताप थे। हल्दीघाटी में जब अकबर और राणा का युद्ध हुआ तो मुगलों के पास लाखों में सैनिक थे और महाराणा के पास कुछ ही योद्धा थे।
लेकिन फिर भी अकबर, महाराणा प्रताप को हरा नहीं पाये। न तो अकबर की जीत हुई और न ही महाराणा प्रताप की हार। एक ऐसा ही किस्सा और है जिसे अकबर भी सलाम ठोकते थे।
ये किस्सा वर्ष 1568 तब का है जब चित्तौड़ पर अकबर ने आक्रमण किया था। उस दौरान महाराणा प्रताप के पिता महाराणा उदय सिंह की हुकूमत थी।
अकबर अपनी फौज लेकर किले के बाहर खड़ा थे। महाराणा उदय सिंह ने अपने सामंतों के कहने पर किले की जिम्मेदारी सेनापति जयमल और पट्टा को सौंप कर सुरक्षित स्थान पर निकल गए थे।
कहते हैं मुगलों की संख्या 60 हजार थी और राजपूत सिर्फ 8 हजार थे। लेकिन जयमल राठौड़ और पट्टा चुंडावत मुगलिया फौज पर भूखे शेरों की तरह टूट पड़े।
युद्ध में जयमल और पट्टा को लड़ता देख अकबर भी हैरान हो गया था। अकबर ने राजपूतों के किस्से तो सुने ही थे लेकिन इस युद्ध में उसने इनकी वीरता भी देख ली थी।
इस युद्ध में मुगलों की जीत हुई थी लेकिन जयमल और पट्टा की वीरता से अकबर इतना प्रभावित हुए की अपने दरबार में उनकी वीरता के किस्से बखानतें और इस जंग को वो कभी भूल नहीं पाए।
इतिहासकार ये भी बताते हैं कि, जयमल और पट्टा की वीरता से प्रभावित होकर अकबर ने आगरा किले के द्वार पर दोनों की हाथी पर बैठे हुए मूर्तियां बनाई थी।