Jan 07, 2024 Vivek Yadav
(Source: Shri Ram Janmbhoomi/FB)
अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर की तैयारियां खूब जोरों पर हैं। इस महीने 22 जनवरी को रामलला का प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होना है। लेकिन, इतने बड़े श्रीराम मंदिर के निर्माण में लोहे का एक भी टुकड़े तक का इस्तेमाल नहीं किया गया है।
राम मंदिर को परंपरागत नागर शैली में बनाया जा रहा है और इस शैली में लोहे का इस्तेमाल नहीं होता है। ऐसा इसलिए ताकी मंदिर की आयु लंबी रहे।
पहले के जमाने में भी ज्यादातर इमारतें बगैर लोहे के ही बनती थीं और यही वजह है कि आज भी दशकों पुरानी इमारते या मंदिरें वैसे की वैसी ही टिकी हुई हैं।
आर्टिफिशियल रॉक को मंदिर की नींव के रूप में इस्तेमाल किया गया है। मंदिर के फाउंडेशन में ऐसी कंक्रीट डाली गई है जो भविष्य में चट्टान बन जाएगी।
अगर लोहे का इस्तेमाल होता तो बार-बार मरम्मत की जरूरत पड़ती और इससे मंदिर की आयु कम हो जाती है। इसके निर्माण में लोहे का साथ ही सीमेंट और कंक्रीट का भी बिल्कुल इस्तेमाल नहीं किया गया है।
राम मंदिर की रचना 1,000 साल आयु के हिसाब से की गई है। इतने सालों तक इसमें मरम्मत की जरूरत नहीं होगी।
नागर शौली उत्तर भारतीय हिंदी स्थापत्य कला की तीन शौलियों में से एक है। इस शैली में बनने वाले मंदिर प्रायः चार कक्ष होते हैं- गर्भ गृह, जगमोहन, नाट्य मंदिर और भोग मंदिर।
मुख्य तौर पर नागर शैली उत्तर भारत में विकसित हुई है। खजुराहो मंदिर, सोमनाथ मंदिर और कोणार्क का सूर्य मंदिर भी नागर शैली में ही बने मंदिर है।
Source: Social Media
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