दुनिया के इन 5 देशों में सैटेलाइट से होता है टोल कलेक्शन, भारत में भी जल्द होगा शुरू

भारत में नेशनल हाइवे और एक्सप्रेसवे पर सफर करने वालों के लिए एक बड़ी खबर है। अब जल्द ही टोल प्लाजा खत्म हो सकते हैं और उनकी जगह सैटेलाइट बेस्ड टोल कलेक्शन सिस्टम लागू किया जाएगा। यह एक आधुनिक तकनीक है, जिससे टोल टैक्स कलेक्शन और ट्रैफिक मैनेजमेंट पहले से अधिक प्रभावी और सुविधाजनक होगा।

क्या है सैटेलाइट बेस्ड टोल कलेक्शन सिस्टम?

वर्तमान में टोल टैक्स देने के लिए फास्टैग सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है, जिसमें वाहनों के विंडशील्ड पर एक RFID (रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन) टैग लगा होता है। जब वाहन टोल प्लाजा से गुजरता है, तो ऑटोमेटिकली भुगतान हो जाता है। हालांकि, कई बार सर्वर समस्या के कारण जाम की स्थिति बनी रहती है।

वहीं, सैटेलाइट बेस्ड टोल सिस्टम में यह समस्या खत्म हो जाएगी। इसमें GNSS (ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) का उपयोग किया जाएगा, जो वाहन की ट्रैकिंग करके तय की गई दूरी के आधार पर टोल शुल्क काटेगा।

सैटेलाइट टोल सिस्टम का काम करने का तरीका

इस प्रणाली के तहत ओन-बोर्ड यूनिट (OBU) नामक एक डिवाइस हर वाहन में लगाया जाएगा, जो वाहन की लोकेशन और यात्रा की गई दूरी को रिकॉर्ड करेगा। यह डेटा सैटेलाइट के माध्यम से केंद्रीय सर्वर पर भेजा जाएगा, जिसके बाद निर्धारित टोल शुल्क वाहन स्वामी के अकाउंट से काट लिया जाएगा।

भारत में इसकी शुरुआत कब होगी?

पिछले साल 26 जुलाई 2024 को केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने संसद में इस योजना की घोषणा की थी। सरकार इस तकनीक को जल्द से जल्द लागू करने की तैयारी कर रही है, जिससे टोल प्लाजा खत्म हो सकते हैं और टोल भुगतान की प्रक्रिया पूरी तरह से स्वचालित हो जाएगी।

भारत पहला देश नहीं है, जो सैटेलाइट आधारित टोल कलेक्शन सिस्टम लागू करने जा रहा है। इससे पहले, जर्मनी, हंगरी, बुल्गारिया, बेल्जियम और चेक रिपब्लिक जैसे देशों में यह प्रणाली पहले से लागू है।

इस प्रणाली से क्या फायदे होंगे?

टोल प्लाजा पर लगने वाला जाम खत्म होगा और वाहनों को रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पेमेंट ऑटोमेटिक होगा और तय की गई दूरी के हिसाब से शुल्क लिया जाएगा। फास्टैग की सीमाओं से छुटकारा मिलेगा और सर्वर डाउन होने की समस्या से राहत मिलेगी।