कहीं आप भी तो गलत तरीके से नहीं करते हैं आरती? यहां जानें क्या है सही विधि

सनातन धर्म में पूजा-पद्धति को लेकर कई नियम और रीति रिवाज हैं। ऐसा ही एक रिवाज है, किसी भी तरह की पूजा-अर्चना के बाद करती करने का।

हिंदू धर्म में आरती के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आरती करने का भी एक सही तरीका होता है?

कई धार्मिक ग्रंथों में बताया गया है कि कोई भी कार्य तभी करना चाहिए जब आप उसे सही तरीके से करना जानते हों। चाहे वह किसी खास मंत्र का जाप हो या आरती करना हो। इसी कड़ी में यहां हम आपको आरती करने का सही तरीका बता रहे हैं।

ऐसे करें शुरुआत

धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, आरती की शुरुआत में दीये को भगवान के चरणों के चारों ओर 4 बार घुमाएं। ये खुद को परमात्मा के चरणों में समर्पित करने की ओर इशारा होता हैं।

आरती की थाली को पैरों के चारों ओर चार बार घुमाने के बाद, दीये को भगवान की मूर्ति या तस्वीर के धड़ (नाभि के पास) के चारों ओर 2 बार घुमाया जाता है। नाभि हिंदुओं में जीवन और सृजन के स्रोत का प्रतिनिधित्व करती है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा का जन्म भगवान विष्णु की नाभि से हुआ था। ऐसे में भगवान के चरणों में नमन करने के बाद नाभि का पूजन करें।

इसके बाद, आरती के दीये को देवता के चेहरे के चारों ओर एक या दो बार (जैसा कि आपका परिवार हमेशा से करता आ रहा है) घुमाना चाहिए। यह भाव इस मान्यता का प्रतीक है कि देवता के चेहरे पर एक दिव्य शक्ति है, सकारात्मकता की भावना है, जो भक्तों को उन्हें देखने पर मिलती है।

भगवान के पैरों, धड़ और चेहरे के चारों ओर आरती पूरी करने के बाद, आरती की थाली को देवता की पूरी मूर्ति के चारों ओर छह से सात बार घुमाना चाहिए। पूरी मूर्ति या छवि के चारों ओर का यह पूरा घेरा दिव्य अभिव्यक्ति की संपूर्णता और उस ऊर्जा का प्रतीक है जिसका प्रतिनिधित्व देवता करते हैं। इस तरह आरती संपन्न की जाती है।