पूजा- पाठ करते समय हाथ में क्यों बांधा जाता है लाल धागा, जानिए इसके लाभ

हिंंदू धर्म में जब भी कोई धार्मिक या मांगलिक कार्यक्रम होता है। तो हाथ में व्यक्ति के साथ में किसी पंडित के द्वारा कलावा बांधा जाता है।

इस लाल धागे को मौली और रक्षा सूत्र कहा जाता है। मान्यता है इस मौली के बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।

मौली का शाब्दिक अर्थ होता है सबसे ऊपर और इसे कलाई पर बांधने की वजह से कलावा भी कहा जाता है। आइए जानते हैं हाथ में कलावा बांधने के क्या होते हैं लाभ…

यहां से शुरू हुई कलावा बांधने की परंंपरा

शास्त्रों के अनुलार कलावा बांधने की परंपरा राजा बलि के समय से चली आ रही है। क्योंकि राजा बलि की दानवीरता से वामन देव बहुत प्रसन्न हुए थे और उन्होंने अमरता का वरदान देने के लिए राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था।

त्रिदेवों का मिलता है आशीर्वाद

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कलावा बांधने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है।

सेहत रहती है अच्छी

कलाई की जिन जगह से शरीर के वात, पित्त और कफ की जानकारी मिलती है। वहां कलावा बांधने से कलाई की नसों पर दबाव बना रहता है और हमारे शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन बना रहता है। जिससे सेहत अच्छी रहती है।

ये हैं कलावा बंधवाने के नियम

शास्त्रों के नियमों के अनुसार पुरुष और अविवाहित स्त्रियों को दाएं हाथ में और विवाहित स्त्रियों को बाएं हाथ में कलावा बंधवाना चाहिए।

सुख- समृद्धि की होती है प्राप्ति

कलाई पर मौली बांधकर की गई पूजा जल्दी सफल होती है। भक्तों को देवी-देवताओं की कृपा मिलती है। साथ ही सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है।

इस दिन हाथ से उतारें कलावा

वहीं कलावा को हमेशा मंगलवार या शनिवार के दिन ही हाथ से उतारना चाहिए। साथ ही इसे पीपल के पेड़ के नीचे रखना चाहिए। ऐसा करने से धन- समृद्धि जीवन में बनी रहती है।