भारत ही नहीं सीरिया समेत कई देशों में मंगलसूत्र पहनती हैं महिलाएं, जानिए कहां से हुई थी इसकी शुरुआत

हिंदू शादियों में मंगलसूत्र और सिंदूर दोनों की काफी अहमियत रहती है। दोनों ही चीजों को सुहाग की निशानी माना जाता है। यह गहना स्त्री मरते दम तक नहीं छोड़ती। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूरे देश में मंगल सूत्र पहने जाने का चलन नहीं है।

भारत में ऐसे कई समुदाय हैं, जिनमें मंगलसूत्र नहीं पहना जाता है। इसके बजाय वो दूसरे वैवाहिक प्रतीकों जैसे बिछुआ, कांच की चूड़ियां, गले में कंठी पहनती हैं। इतिहासकारों के मुताबिक, मंगलसूत्र पहनने की परंपरा छठी शताब्दी में शुरू हुई थी।

मोहनजो-दड़ो की खुदाई में मंगलसूत्र के साक्ष्य मिले हैं। वहीं, मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत सबसे पहले दक्षिण भारत में हुई। इसके बाद धीरे-धीरे यह न केवल भारत में बल्कि कुछ अन्य देशों में भी लोकप्रिय हो गया।

वहीं, कुछ इतिहासकारों का कहना है कि विवाह के बाद दुल्हन को मंगलसूत्र पहनाने की प्रथा एक आधुनिक अवधारणा है, जो व्यवसायों की मार्केटिंग रणनीतियों के कारण संभव हो पाई है। हालांकि, हिंदू परंपरा के अनुसार मंगलसूत्र पति की लंबी उम्र के लिए पहना जाता है।

शास्त्रो के अनुसार, हिंदू धर्म में मंगलसूत्र की शुरुआत शिव-पार्वती से हुई थी। जब शिवजी का विवाह पार्वती से हो रहा था, तब उन्हें सती की याद आई, उन्हें वह दृश्य याद आने लगे जब सती ने हवन की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी।

इसके बाद भगवान शिव ने माता पार्वती की रक्षा के लिए पीले धागे में काले मोतियों का एक रक्षा सूत्र बांधा। इसका पीला भाग मां पार्वती और काले मोतियों को शिव का प्रतीक माना गया

तभी से हिंदू धर्म में शादी के बाद मंगलसूत्र पहनने की परंपरा बन गई। हालांकि, समय के साथ मंगलसूत्र की बनावट में भी अंतर आ गया। अब मंगलसूत्र में पीले धागे की जगह काले और सोने के मोतियों ने ले ली है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के अलावा भी ऐसे कई देश हैं जहां महिलाएं मंगलसूत्र पहनती हैं। इन देशों में नेपाल, बंग्‍लादेश और पाकिस्‍तान में हिंदुओं के अलावा सीरियाई ईसाइयों जैसे गैर-हिंदू लोग भी मंगलसूत्र पहनते हैं, मगर उस पर एक क्रॉस भी बना होता है।