शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की विधिवत पूजा करने के साथ शिवलिंग का जलाभिषेक करने से वह अति प्रसन्न होते हैं।
शिवलिंग की पूजा के दौरान केतकी के फूल चढ़ाना वर्जित माना जाता है, क्योंकि इसे शाप मिलेगा था। जानें पौराणिक कथा
शिवपुराण के अनुसार, भगवान विष्णु और ब्राह्मा जी के बीच इस बात को लेकर युद्ध छिड़ गया था कि उन दोनों से श्रेष्ठ कौन है।
सभी देवताओं हारकर शिव जी के पास इसका हल निकालने के लिए कहा, तो भगवान शिव दोनों देवताओं के बीच खड़े होकर एक शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए।
इस शिवलिंग का कोई अंत या फिर शुरूआत नहीं थी। ऐसे में शिवजी ने ब्रह्मा और विष्णु से कहा कि जो भी इस शिवलिंग का अंत या आरंभ पता कर लेगा, वहीं श्रेष्ठ होगा।
ऐसे में भगवान शिव वराह रूप धारण करके पाताल के अंदर और ब्रह्मा जी हंस के रूप में आकाश की ओर गए। लेकिन उन्हें कोई भी अंत या आरंभ न मिला।
विष्णु जी हारकर वापस आ गए। लेकिन ब्रह्मा जी को आरंभ नहीं मिलेगा। लेकिन केतकी के फूल को साक्षा बनाकर वापस शिव जी के सामने आए।
ब्रह्मा जी ने कहा कि मुझे शिवलिंग का आरंभ मिल गया है और इसका साक्षी ये केतकी का फूल है। ऐसे में शिव जी से मुस्करा कर कहा है कि आप झूठ बोल रहे हैं। इसका कोई अंत और आरंभ नहीं है ।
ऐसे में शिव जी से विष्णु जी को श्रेष्ठ घोषित कर दिया। इसके साथ ही ब्रह्मा जी को दंड देने के साथ केतकी के फूल को शाप देते हुए कि जो फूल झूठ का साथ देता है, तो मैं उसे स्वीकार नहीं करता।
इसी के कारण शिव पूजा में केतकी का फूल इस्तेमाल नहीं होता है।