आचार्य चाणक्य के अनुसार, व्यक्ति ज्ञान को तो खूब अर्जित कर लेते हैं। लेकिन उसका समय-समय पर अभ्यास नहीं करते हैं।
ऐसे में आप किसी चीज में एक दम परांगत तो है, लेकिन अभ्यास न कर पाने के कारण उसे नहीं कर पाते हैं। कई बार ये आपके लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
जिसमें जीवन से जुड़ी कई बातों का भलीभांति जिक्र किया है। उसमें लिखी कई बातें आज भी युवाओं का मार्गदर्शित करती है।
जिस प्रकार बढ़िया-से बढ़िया भोजन बदहजमी में लाभ पहुंचाने के स्थान में हानि पहुंचता है और विष का काम करता है।
उसी प्रकार निरन्तर अभ्यास न रखने से शास्त्रज्ञान भी मनुष्य के लिए घातक विष के समान हो जाता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि अगर आप किसी चीज यानी किसी विषय में प्रकाष्ठ बनना चाहते हैं, तो उसे अच्छे से जाने और पढ़ें।
कई बार थोड़ा बढ़ लेने के बाद हम खुद को ज्ञानी समझने लगते हैं। ऐसे में उसका हम निरंतर अभ्यास भी नहीं करते हैं।
समय-समय पर किसी चीज का अभ्यास न करने से उसके बारे में हम बिल्कुल भी पुख्ता नहीं हो पाते हैं।
उदाहरण के लिए आपने मेडिकल की डिग्री तो ले ली। लेकिन अभ्यास न करने के कारण वो आपके लिए वो डिग्री रद्दी के बराबर है।